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________________ विश्वतत्त्वप्रकाशः [५१ १७४ [ ५१. प्रतिशरीरं जीवपृथक्त्वम् । ] तथा क्षेत्रज्ञाः प्रतिक्षेत्रं विभिन्ना एव भवन्ति एकस्मिन्नेव काले एकस्मिन् वस्तुनि अयं तववेदी अयं मिथ्याज्ञानी अयं रागी अयं विरक्त इत्यादिव्यवस्थान्यथानुपपत्तेः । ननु प्रतिक्षेत्रं क्षेत्रज्ञभेदाभावेऽपि अन्तःकरणानां प्रतिक्षेत्रं भेदसद्भावात् तदाश्रितत्वेनैव व्यवस्थोपपत्तेरर्थापत्तेरन्यथैवोपपत्तिरिति चेन्न । अन्तःकरणं धर्मि तत्त्ववेदि मिथ्याज्ञानि इत्यादि व्यवस्थाभाजनं न भवति जडत्वात् जन्यत्वात् करणत्वात् अविद्याकार्यत्वात् चक्षुरादिवदिति अन्तःकरणस्य प्रमाणादेव व्यवस्थाभाजनत्वानुपपत्तेरर्थापत्तेर्नान्यथोपपत्तिः । ननु मम श्रोत्रं सम्यग् जानाति चक्षुर्विपरीतं जानातीत्येकात्माधिष्ठितेषूपाधिषु आत्मभेदाभावेऽपि व्यवस्थोपलभ्यत इति चेन्न । एकस्मिन् वस्तुनीत्युक्तत्वात् । किं च । श्रोत्रादीनां ज्ञातृत्वाभावेन सम्यग्मिथ्याज्ञानित्वानुपपत्तेः । अथ श्रोत्रादीनां ज्ञातृत्वाभावः ५१. प्रत्येक शरीर में भिन्न आत्मा है - प्रत्येक शरीर में भिन्न भिन्न आत्मा है, आत्मा एक ही होता तो एक ही समय में यह तत्त्वज्ञ है तथा मिथ्या ज्ञाना है, यह आसक्त है तथा विरक्त है इस प्रकार परस्पर विरुद्ध व्यवहार संभव नही होता । तत्त्वज्ञ आदि सब भेद अन्तःकरण के हैं प्रत्येक शरीर में भिन्न भिन्न अन्तःकरण हैं किन्तु आत्मा सब में एक ही है यह कथन भी अनुचित है । अन्तःकरण चक्षु आदि बाह्य इन्द्रियों के समान जड, उत्पत्तियुक्त, साधनभूत तथा अविद्या का कार्य है अतः यह तत्रज्ञ है या मिथ्याज्ञानी है यह व्यवहार अन्तःकरण के विषय में सम्भव नही । आला के एक ही होने पर भी कान से यथार्थ ज्ञान हुआ, चक्षुसे गलत ज्ञान हुआ यह भिन्न व्यवहार संभव है उसी प्रकार तत्त्वज्ञ और मिथ्याज्ञानी यह व्यवहार भी एक ही आत्मा में होता है यह कथन भी सदोष है । एक दोष तो यह है कि इस उदाहरण में कान और आंख - १ एकस्मिन् आत्मनि अयं तत्त्ववेदी अयं मिध्याज्ञानीति व्यवहारानुपपत्तेः । २ प्रतिक्षेत्रात्मभिन्नत्वमन्तरेण । ३ चक्षुः श्रोत्र। दिषु । ४ सर्वत्र एकस्मिन् आत्मनि सति अ तत्त्ववेदीत्यादि उक्तत्वात् । ५ सम्यग्ज्ञानित्वं मिथ्या ज्ञानिखं च ।
SR No.022461
Book TitleVishva Tattva Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh
Publication Year1964
Total Pages532
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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