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________________ १०६ विश्वतत्त्वप्रकाशः ___आचारविषयक ग्रन्थों में ज्ञान अथवा चारित्र सम्यक् होने के लिए तत्वों के यथार्थ स्वरूप पर श्रद्धा होना-सम्यग्दर्शन का होना जरूरी है। इस लिए गृहस्थ अथवा मुनियों के आचार का वर्णन करनेवाले कई ग्रंथों में जीवाजीवादि तत्त्वों की अच्छी तार्किक चर्चा प्रस्तुत की गई है। इस दृष्टि से अमितगति ( ग्यारहवीं सदी) के उपासकाचार का चौथा परिच्छेद उल्लेखनीय है । राजमल्ल ( सोलहवीं सदी) की लाटीसंहिता में भी इस प्रकार की चर्चा है और उस का पल्लवित रूप उन्हों ने पंचाध्यायी में दिया है। ९४. खण्डनमण्डनात्मक साहित्य-शाकटायन, प्रभाचन्द्र, अभयदेव व शुभचन्द्र आदि के तार्किक ग्रंथों में केवली का भोजन तथा स्त्रियों की मुक्ति इन विषयों की भी चर्चा है यह ऊपर बताया ही है। ये विषय दिगम्बर तथा श्वेतांबर इन दो सम्प्रदायों में परस्पर मतभेद, खण्डनमण्डन तथा विवाद के कारण थे। किन्तु श्वेताम्बर तथा दिगम्बरों के गण-गच्छादि उपभेदों में भी परस्पर छोटी छोटी बातों को लेकर काफी मतभेद एवं विवाद थे और उन विषयों पर काफी ग्रन्थरचना भी हुई है। ऐसे ग्रंथों में प्रद्युम्नसूरि ( बारहवीं सदी) का वादस्थल, जिनपतिसरि ( बारहवीं सदी ) का प्रबोध्यवादस्थल, जिनप्रभसूरि (चौदहवीं सदी) का तपोटमतकुट्टन, हर्षभूषण ( पन्द्रहवी सदी) का अंचलमतदलन, धर्मसागर (सोलहवीं सदी) की औष्टिकमतोत्सत्रदीपिका, गुणविनय (सोलहवीं सदी) का लुम्पाकमतखण्डन, यशोविजय (सत्रहवीं सदी) का आध्यात्मिकमतदलन, जगन्नाथ (सत्रहवीं सदी) का सिताम्बरपराजय, नयकुंजर ( सत्रहवीं सदी) का ढुंढिकमतखंडन, मेघविजय ( सत्रहवीं सदी) की धर्ममंजषा आदि का उल्लेख किया जा सकता है। ये ग्रन्थ मुख्यतः साम्प्रदायिक स्पर्धा पर आधारित हैं। अतः तार्किक साहित्य में इन का अन्तर्भाव करना उचित नहीं । ९५. देशी भाषाओं में तार्किक साहित्य-- भारत की आधुनिक भाषाओं में तमिल, कन्नड, गुजराती, हिंदी तथा मराठी इन पांच भाषाओं में जैन लेखकों ने कथा, काव्य, आचार, उपदेश आदि विषयोंपर
SR No.022461
Book TitleVishva Tattva Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh
Publication Year1964
Total Pages532
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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