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जैन तर्क भाषा दिति, शब्दादेविशिष्टस्य तस्य (भा) नाभ्युपगमे विशेषणस्य संशयेऽभावनिश्चये वा वैशिष्टयभा (ना) नुपपत्तेः विशेषणाद्यंशे आहार्यारोपरूपा विकल्पात्मिकवानुमितिः स्वीकर्तव्या, देशकालसतालक्षणस्यास्तित्वस्य, सकलदेशकालसत्ताऽभावलक्षणस्य च नास्तित्वस्य साधनेन परपरिकल्पितविपरीतारोपव्यवच्छेदमात्रस्य फलत्वात् ।
वस्तुतस्तु खण्डशः प्रसिद्धपदार्थाऽस्तित्वनास्तित्वसाधनमेवोचितम् । अतएव "असतो नत्थि णिसेहो" (विशेषा० गा० १५७४) इत्यादि भाष्यग्रन्थे खरविषाणं नास्तीत्यत्र 'खरे विषाणं नास्ति' इत्येवार्थ उपपादितः । एकान्तनित्यमर्थक्रियासमर्थ न भवति क्रमयोगपद्याभावादित्यत्रापि विशेषावमर्शदशायां क्रमयोगपद्यनिरूपकत्वाभावेनार्थक्रियानियामकत्वाभावो नित्यत्वादौ सुसाध (ध्य) इति सम्यग्निभालनीयं स्वपरसमय दत्तदृष्टिभिः। ज्ञान स्वीकार नहीं किया है) शब्द या व्याप्तिज्ञान आदिसे, विशिष्ट विकल्प सिद्ध धर्मीका ज्ञान मानने पर उसके विशेषणमें संशय होनेपर या २अभावका निश्चय होनेपर विशिष्टताका ज्ञान होना संभव नहीं है, तथापि विशेषणादि अंशमें आहार्यारोप रूप विकल्पात्मक अनुमिति स्वीकार करना चाहिए । अमुक देश या कालमें सत्तारूप अस्तित्व और सकल देश तथा कालमें अभाव रूप नास्तित्वको सिद्ध करनेसे अन्यकल्पित विपरीत समारोपका निराकरण हो जाता है । यही विकल्पसिद्धधर्मीको स्वीकार करनेका फल है ।
वास्तवमें तो खण्डशः प्रसिद्ध पदार्थका अस्तित्व या नास्तित्व (जैसे प्रसिद्ध शृंग अंशमें प्रसिद्ध शशीयत्वका अभाव) सिद्ध करना ही उचित है, अर्थात् पूर्वोक्त तीन पक्षोंमेंसे तीसग पक्ष ही सर्वथा निर्दोष है। 'असतो नत्थि णिसे हो' इत्यादि भाष्यगाथामें 'खरविषाणं नास्ति' इस वाक्यका 'खरमें या खरके मस्तकपर विषाण नहीं हैं, ऐसा ही अर्थ प्रतिपादित किया गया है।
'एकान्त नित्य पदार्थ अर्थक्रिया करनेमें समर्थ नहीं है, क्योंकि उसमें क्रम और योगपद्य का अभाव है, इस अनुमानमें, विशेष धर्मोके परामर्शकी दशामें क्रम और योगपद्यके अभावमें अर्थक्रिया नियामकत्वका अभाव एकान्त नित्यत्व आदिमें विना किसी कठिनाईके साधा जा सकता है। तात्पर्य यह है कि जैनदर्शनमें यद्यपि एकान्त नित्य पदार्थ सिद्ध नहीं है, किन्तु उसे विकल्पसिद्ध मानकर एकान्त नित्य पदार्थमें अर्थक्रियाका अभाव सिद्ध करने में कोई कठिनाई नहीं हो सकती। अर्थात् किसी पदार्थकी सत्ता अर्थक्रियासे सिद्ध होती है और अर्थक्रिया क्रम या यौगपद्यसे सिद्ध होती है । अतएव यदि क्रम और योगपद्यका अभाव हो तो अर्थक्रिया नहीं और अर्थक्रिया न हो तो सत्ता नहीं। इस न्यायसे नित्य पदार्थमें अर्थक्रियाका अभाव सिद्ध करना सरल है । इस विषयमें स्वसमय और परसमय पर दृष्टि रखने वालोंको सम्यक् प्रकारसे विचार करना चाहिए।
१ शशके विषाण होते हैं या नहीं, ऐसा सन्देह । २ शशके विषाण नहीं होते, इस प्रकार अभावका निश्चय । ३ बाधकालीन इच्छाजन्य ज्ञान शृंगमें शशीयत्वका ज्ञान हो ऐसी इच्छासे उत्पन्न होनेवाला ज्ञान ।