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जैन तर्क भाषा
वहिनज्ञानस्यापि व्याप्तिस्मरणादिसापेक्षमनसैवोपपत्तौ अनुमानस्याप्युच्छेदप्रसङ्गात् । किञ्च, 'प्रत्यभिजानामि' इति विलक्षणप्रतीतेरप्यतिरिक्तमेतत्, एतेन ,विशेष्येन्द्रियसन्निकर्षसत्त्वाद्विशेषणज्ञाने सति विशिष्टप्रत्यक्षरूपमेतदुपपद्यते' इति निरस्तम्; 'एतत्सदृशः सः' इत्यादौ तदभावात्,स्मृत्यनुभवसङ्कलनक्रमस्यानुभविकत्वाच्चेति दिक् ।
अत्राह भाट्टः-नन्वेकत्वज्ञानं प्रत्यभिज्ञानमस्तु, सादृश्यज्ञानं तूपमानमेव, गवये दृष्टे गवि च स्मृते सति सादृश्यज्ञानस्योपमानत्वात्, तदुक्तम्
"तस्माद्यत् स्मर्यते तत् स्यात् सादृश्येन विशेषितम् । प्रमेयमुपमानस्य सादृश्यं वा तदन्वितम् ॥ प्रत्यक्षेणावबुद्धेऽपि साहये गवि च स्मृते ।
विशिष्टस्यान्यतोऽसिद्धरुपमानप्रमाणता ॥" श्लोकवा० उप० ३७-३८ इति; तन्न; दृष्टस्य सादृश्यविशिष्टपिण्डस्य स्मृतस्य च गोः सङ्कलनात्मकस्य 'गोसदृशो गवयः' इति ज्ञानस्य प्रत्यभिज्ञानताऽनतिक्रमात् । अन्यथा 'गोविसदृशो
ऐसा न माना जाय तो यह भी कहा जा सकेगा कि व्याप्ति-स्मरण की सहायतासे, मनसे ही पर्वतमें अग्निका ज्ञान हो जाता है, अतएव वह भी प्रत्यक्ष है। ऐसी अवस्थामें अनुमानका भी अभाव हो जायगा।
इसके अतिरिक्त 'प्रत्यभिजानामि' इस विलक्षण प्रतीतिसे भी प्रत्यभिज्ञान अलग ही सिद्ध होता है। इस विवेचनसे नैयायिकोंका यह कहना भी खण्डित हो जाता है कि 'स एवायं घट: ( यह वही घट है)' यहाँ घट रूप विशेष्यके साथ इन्द्रियका सन्निकर्ष होनेसे 'वह' इस प्रकारके विशेषणज्ञान-स्मरणकी सहायतासे विशिष्ट प्रत्यक्षरूप ही प्रत्यभिज्ञान उत्पन्न होता है । क्यों कि' वह इसके समान है इस सादृश्यप्रत्यभिज्ञानमें उक्त कथन घटित नहीं हो सकता-और स्मृति तथा अनुभवकी संकलनाका क्रम अनुभवमें आता है। अतः प्रत्यभिज्ञान पृथक् ही प्रमाण है।
___ भाट्ट कहते हैं-एकत्वको विषय करनेवाला ज्ञान भले ही प्रत्यभिज्ञान कहलाए, किन्तु सद्दशताको जाननेवाला ज्ञान उपमान है। गवयके देखनेपर और गौका स्मरण होनेपर जो सदृशता का ज्ञान होता है, वह उपमान है। कहा भी है-'सदृशतासे युक्त जिस पदार्थका स्मरण किया जाता है, वह उपमान का प्रमेय (विषय) है । अथवा उस पदार्थसे युक्त सदृशता उपमानका विषय है। सादृश्य यद्यपि प्रत्यक्षसे दिखाई देता है और गायका स्मरण होता है, फिर भी विशिष्टताका बोध किसी भी अन्य प्रमाणसे नहीं होता। इसी कारण उपमान प्रमाण है।
___ भाट्टोंकी यह मान्यता युक्त नहीं है। प्रत्यक्ष और स्मरणके जोड़रूप ज्ञानको प्रत्यभिज्ञान कहा गया है। 'गवय गौके समान है' इस ज्ञानमें भी उक्त लक्षण घटित होता है । अतएव