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महोपाध्याय श्री यशोविजयगणिविरचित जैन तर्क भाषा का दार्शनिक जगत में महत्त्वपूर्ण स्थान है। उपाध्यायजीके प्रगाढ़ पाण्डित्य और गंभीरतम विचारोंकी इस ग्रन्थ में सुस्पष्ट झलक मिलती है । विवेचनशली सुन्दर है, किन्तु उसमें गूढता भी अत्यधिक है। जिस विषयका प्रतिपादन करना होता है, उसके बारेम जैन-अजैन किसी भी दार्शनिक दृष्टिकोण को पूर्व पक्ष के रूपमें चर्चार्थ प्रस्तुत करते समय वे ऐसी खूबी रखते हैं जिसे अध्येता सहज ही नहीं समझ सकता। पर जब उसे उस ग्रन्थिका रहस्य भली-भाँति समझ आता है तब उषाध्यायजी की अप्रतिम प्रतिभा और विशिष्ट शैली के विषय में श्रद्धा और आदर की भावना और बढ़ जाती है, इसीलिये अध्येता और अध्यापक ग्रन्थ की निजी विशेषता के बारेमें मुक्तकण्ठ से प्रशंसा करते हैं।
प्रस्तुत ग्रन्थ अनेक विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रमोंमें निर्धारित है। इसीलिये इसके आशय को सुस्पष्ट करने के लिये कई टीकाएँ हुई हैं और वे सब प्रकाशन संस्थाओं के द्वारा प्रकाशित होकर जिज्ञासुओं के समक्ष प्रस्तुत की गई हैं, किन्तु स्वतंत्र भारत की राष्ट्रभाषा में अद्यावधि कोई अनुवाद इस ग्रन्थ का नहीं हो सकनेके कारण विद्यार्थियों की तरफ से हमारे पास बार-बार माँग होती रहती थी, अनेक अध्यापकों के भी इस तरफ संकेत थे।
श्रमण संघके आचार्यसम्राट् परमश्रद्धेय महामहिम पंडितरत्न जैनदिवाकर पूज्य श्री १००८ श्री आनन्द ऋषिजी म. समाज में सम्यक् ज्ञान-दर्शन-चारित्रका प्रचार विशेष रूप में हो, एतदर्थ स्वयं जागरूक रहते हुये जनता का ध्यान इस ओर आकृष्ट करना आवश्यक समझते हैं।
बदनौर चातुर्मास में आपने एक शिष्य को जैन-तर्क भाषा का अध्ययन कराते समय शिष्य द्वारा पुनः पुनः पूछे जानेपर उक्त्त ग्रन्थ के विषयमें शिष्य की कठिनाई का अनुभव किया और छात्रोंद्वारा इसके हिन्दी अनवाद की माँग की यथार्थता पर आपका ध्यान आकृष्ट हुवा ।
पूज्य श्रीजी का सं. २०१८ का चातुर्मास आश्वी जिला अहमदनगरमें हुआ। उस समय कई विद्यारसिक श्रावकोंने पाथर्डी परीक्षा बोर्ड की उच्च परीक्षाओं के पाठ्यग्रन्थों के प्रकाशनार्थ अपनी उदार भावना अभिव्यक्त्त की थी। अबतक बोर्ड का पुस्तक प्रकाशन विभाग, जैन सिद्धान्त विशारद परीक्षा तक के पाठ्यग्रन्थों के प्रकाशन में अपनी शक्ति का उपयोग कर रहा था। जब समाज के उदारहृदयी सद्गृहस्थों के सहयोग विशिष्ट ग्रन्थों के प्रकाशनार्थ भी प्राप्त होने लगे, तब इसकी क्षमता और अधिक बढ़ जानसे जैन सिद्धांत शास्त्री और जैन सिद्धान्ताचार्य के पाठ्य ग्रन्थों के प्रकाशन का इसने निश्चय किया।
पूज्य श्री जी का चातुर्मास सं. २०१९ में घाटकोपर में हुआ, उस समय प्रसिद्ध महासतीजी श्री रंभाजी म., विदुषी श्री सुमति कुँवर म., ज्ञानसंपादन परायणा श्री चन्दनकुमारीजी म., आदि सतीपरिवार के साथ चातुर्मासार्थ घाटकोपर में ही विराजित थीं। इस सतीपरिवार में जैन तर्कभाषाका अध्ययन चाल था. विद्वत्परिषद् के प्रसंगसे हम तीनों मन्त्री वहां उपस्थित हुये थे। उस समय जैन तर्क भाषा के हिन्दी अनुवाद का प्रश्न उठा और उस कार्य को अतीव उपयुक्त मानकर बोर्ड के पुस्तक प्रकाशन विभाग ने उसकी सहर्ष