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भूतावस्था वर्तमान में कैसे स्वीकार की जा सकती है ? नहीं की जा सकती है। इसी प्रकार किसी व्यक्ति को प्रमुख अादि उच्चपद मिलने की सम्भावना हो तो भी वर्तमान में उसकी एतदर्थ प्रयोजन सिद्धि नहीं मानो जा सकती, क्योंकि सम्भावना में असम्भावना असम्भाव्यदेवात् सभी कुछ बाधाएं हैं। इसलिये ऋजुसूत्र नय तो दृष्टिगत प्रवर्तमान स्थिति जो कार्यसिद्धि की पूर्ण सार्थक स्वरूप है, उसे ही मानता है। वर्तमान काल में भी अपनी ही वस्तु कार्य की साधक हो सकती है, अन्य की नहीं । अतीत, अनागत और परकीय वस्तु से कार्यसिद्धि नहीं होती। अतः अन्य तो आकाशकुसुम के समान प्रयोजनसिद्धि के लिये निरर्थक ही है ।।१२॥
[ १३ ] ऋजुसूत्रनयोऽग्रेतनाश्च केवलं भावं मन्यन्ते एतदर्थ स्पष्टीकररणम्
[ इन्द्रवज्रावृत्तम् ] नामादिनिक्षेपचतुष्षु भावं,
निक्षेपमेकं खल मन्यतेऽयम्। न स्थापनां नैव च नाम-द्रव्ये, मन्तजु सूत्रं परतस्त्रयोऽपि ॥१३॥
नयविमर्शद्वात्रिशिका-३३