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सरलार्थ
यह नयविमर्श वाणी सुमन, अक्षत्तस्वरूप है। इसमें सुन्दर भाव ही परिमल हैं। इन उपकरणों से सुशीलसूरि विनम्रतापूर्वक अपने अन्तिम जिन श्रमण वीर विभु अर्थात् श्रमण भगवान महावीर परमात्मा की अर्चना (पूजा) करता है ॥२३॥
प्रश रितः
(१)
[ अनुष्टुब्वृत्तम् ] पूज्याः श्रीनेमिसूरीशाः,
तपोगच्छेश्वराः शुभाः। सम्राजः शासने प्रौढ़ाः,
तीर्थोद्धारधुरन्धराः ॥२४॥ सरलार्थ--
प्राचार्य श्रीनेमिसूरीश्वरजी म. सा. पूज्य हैं, तपामच्छ के नायक हैं, उत्तम हैं, शासन के सम्राट हैं, प्रौढ़ हैं और तीर्थों का उद्धार करने में धुरन्धर हैं ।।२४।।
नयविमर्शद्वात्रिशिका-८४