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________________ आगमबाधितका उदाहरण:. प्रेत्यासुखप्रदो धर्मः पुरुषाश्रितत्वाधर्मवत्॥१८॥ भाषार्थ-धर्म, (पुण्य) परलोकमें दुःखका देनेवाला होता है क्योंकि वह पुरुषके आश्रयसे होता है जो र पुरुषके श्राश्रयसे होता है वह २ दुःखदायी होता है जैसे अधर्म (पाप)। . भावार्थ-यह पक्ष भागमसे बाधित है क्योंकि आगममें धर्म मुखका देनेवाला और अधर्म दुःखका देनेवाला बतलाया गया है। यद्यपि दोनों पुरुषके श्राश्रयसे होते है तथापि वे भिन्न स्वभाववाले हैं। लोकवाधितका उदाहरणः‘शचि नरशिरःकपालं प्राण्यंगत्वाच्छंखशुक्तिवत् ॥ १९॥ भाषार्थ-मनुष्यके शिरका कपाल (खोपड़ी) पवित्र होता है; क्योंकि वह प्राणीका अंग है जो प्राणीका अंग होता है वह पवित्र होता है जैसे शंख और सीप। भावार्थ-यह पक्ष लोकबाधित है क्योंकि लोकमें प्राणीका अंग होते हुए भी कोई चीज़ पवित्र और कोई अपवित्र मानी गई है। स्ववचनबाधितका उदाहरण:माता मे बन्ध्या पुरुषसंयोगेऽप्यगर्भवत्वात् प्रसिद्धबन्ध्यावत् ॥ २० ॥ भाषार्थ-मेरी माता बन्ध्या है क्योंकि पुरुषका संयोग होने परभी उसके गर्भ नहीं रहता है जिसके पुरुषका संयोग होनेपर भी गर्भ नहीं रहता है वह बन्ध्या कही मासी है जैसे प्रसिद्धमन्यास्त्री ।
SR No.022447
Book TitleParikshamukh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhanshyamdas Jain
PublisherGhanshyamdas Jain
Publication Year
Total Pages104
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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