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भाषा अर्थ |
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भावार्थ -- जिसप्रकार एक दृष्टान्तकी सचाई के लिए दूसरे दृष्टान्तकी श्रावश्यकता हुई, उसीप्रकार उसकी सचाई के लिए तसिरेकी और तीसरेकी सचाई के लिए चौथेकी आवश्यकता होगा; जिस से गगनतलमें फैलनेवाली बड़ी भारी अनवस्था चलीजायगी अर्थात् कहीं पर छोर नहीं प्रावेगा । श्रप्रमाणिक अनन्त पदार्थोंकी कल्पना में विश्रान्ति नहीं होने को ही अनवस्था दोष कहते हैं ।
इसके बाद भी किसी का कहना है कि व्याप्ति का निश्चय उदाहरण से नहीं होता है तो जाने दीजिए; परन्तु व्याप्ति का स्मरण तो होता है बस पूर्व में ग्रहण की हुई व्याप्ति के स्मरण कराने के लिए ही उदाहरण का प्रयोग करिए । उत्तर यह है :
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नापि व्याप्तिस्मरणार्थ तथाविधहेतु प्रयोगा देव तत्स्मृतेः ॥ ४१ ॥
भाषार्थ — व्याप्ति के स्मरण कराने के लिए भी उदाहरण का प्रयोग करना कार्यकारी नहीं है; क्योंकि साध्य के विना नहीं होने वाले, हेतु के प्रयोग से ही व्याप्ति का स्मरण हो जाता है ।
भावार्थ-जब ऐसे हेतु का प्रयोग किया जायेगा, जो कि साध्य के विना हो ही नहीं सकता है तो अवश्य ही उसी से च्याप्ति स्मृत हो जायगी, उदाहरण की कोई भी आवश्यकता नहीं ।
विशेष बात यह है कि पूर्व अनुभूत पदार्थ का ही स्मरण होता है सो यदि व्याप्ति पूर्व अनुभूत रहेगी, तो हेतु प्रयोग से ही