________________
भाषा-बर्य।
~
.
.
..
।
ही होता है प्रतिवादी को नहीं ; किन्तु प्रतिवादी को उस के खण्डन की इच्छा होती है।
भावार्थ-इष्ट विशेषण वादी की ही अपेक्षा से है । जो पहले से पक्ष को बोलता है उसको वादी कहते हैं, और पीछे से पक्ष के निराकरण करने वाले को प्रतिवादी कहते हैं। वह साध्य कहीं धर्म होता है तथा कहीं धर्म से युक्त धर्मी
(पक्ष) होता है :-- . साध्यं धर्मः क्वचित्तद्विशिष्टो वा धर्मी ॥ २५ ॥
भाषार्थ-कहीं ( व्याप्ति प्रयोग के काल में ) धर्म साध्य होता है तथा कहीं ( अनुमान प्रयोग के काल में ) धर्म से युक्त धर्मी साध्य होता है। - भावार्थ-जहां २ धूम होता है वहां २ बह्नि होती है तथा जहां बाह्न नहीं होती, वहां २ धूम भी नहीं होता है इस प्रकार की व्याप्ति के समय में अग्नि रूप धर्म ही साध्य होता है, अन्य नहीं। और इस पर्वत में अग्नि है क्योंकि इसमें धूम है इस प्रकार के अनुमान के समय अग्नि से विशिष्ट पर्वत ही साध्य होता है। ... उसी धर्मी का दूसरा नाम :पक्ष इति यावत् ॥ २६ ॥ भाषार्थ-उसी धर्मी को पक्ष भी कहते हैं ।
वह पक्ष प्रसिद्ध होता है :प्रसिद्धो धर्मी ॥२७॥