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आप्त-परीक्षा।
विस्तृत मार्ग बताने वाले और स्वामिसमन्तभद्र में प्रभावशाली प्राचार्यों के द्वारा मीमांसा किये हुए "मोक्ष मार्गस्य नेतारं" इत्यादि उसी स्तोत्र का इस ग्रन्थ में शक्ति भर प्रयत्न करके सत्यवाक्यार्थ की सिद्धि के लिये जिस तिस प्रकार से वर्णन किया है।
अर्थात् जिस स्तोत्र की स्वामि समन्तभद्र जैसे सर्वज्ञायमान आचार्यों ने परीक्षा की है, उस स्तोत्र का कथन करने के लिये यद्यपि मैं (विद्यानन्द) असमर्थ हूं, तथापि वास्तव में सच्चा आप्त कौन हो सकता है । इस बात की सिद्धि करने को अत्यन्त आवश्यक समझ कर मैने जिस तिस प्रकार से इस स्तोत्र की व्याख्या की है। इति तत्त्वार्थशास्त्रादौ, मुनीन्द्रस्तोत्रगोचरा । प्रणीताप्तपरीक्षेयं, कुविवादनिवृत्तये ॥ १२४ ॥ ___ इस प्रकार तत्त्वार्थशास्त्र की आदि में किये हुए अर्हतदेव के स्तोत्र विषयक "आप्तपरीक्षा नामक ग्रन्थ" . को झूठे वाद विवाद के दूर करने के लिये मैने बनाया है ।। शुभम् ।।
१ वास्तव में आप्त शब्द का क्या अर्थ हो सकता है, इस बात की सिद्धि के लिये। २ मोक्षमार्गस्य नेतार, भेत्तारं कर्मभूभृताम् । .
ज्ञातारं विश्वतत्त्वानां वंदे तद्गुणलब्धये ॥