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जैनमत-विचार । ( मीमांसक ) जिस हेतु के साथ साध्य के अन्वय तथा व्यतिरेक दोनों सिद्ध हो जाते हैं वही हेतु प्रायः ठीक समझा जाता है परन्तु सर्वज्ञता के साधक आप के कहे हुए प्रमेयत्व हेतु का केवल अन्वय ही मिलता है, व्यतिरेक नहीं मिलता, इस लिये जैनियों का कहा हुश्रा प्रमेयत्व हेतु सिद्ध नहीं होता । (जैन) .. यन्नाहतः समक्षं तन्न प्रमेयं वहिर्गतः । मिथ्यैकान्तो यथेत्येवं व्यतिरेकोऽपि निश्चितः ॥९४॥
संमार में जितने पदार्थ हैं उन सब में एक भी पदार्थ ऐसा नहीं है जिस में कि अनेक धर्म न रहते हों । संसार के सम्पूर्ण ही पदार्थों में एक काल में अनेक धर्म रहते हैं। अर्थात् प्रत्येक पदार्थ का अनादि काल से अनंतकाल तक कभी भी अभाव नहीं होता, जो पदार्थ संसारमें है वह हमेशा से है, और जो नहीं है वह कभी भी नहीं है, इसलिये पदार्थ में एक अस्तित्व (मौजूदगी) नामका गुण माना जाता है। प्रत्येक वस्तु प्रतिक्षण नियम से अपनी अवस्थाओं को बदलती रहती है इसलिये पदार्थ में द्रव्यत्व गुण माना जाता है। प्रत्येक पदार्थ अवस्थाओं के बदलते रहने पर भी विजातीय पदार्थ रूप-जैसे कि जीव पुद्गल रूप-नहीं होता, इसलिये वस्तु में अगुरुलघुत्व गुण माना जाता है । इस प्रकार प्रत्येक वस्तु में बहुत से धर्म या