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वैशेषिकमत-विचार। हेतोर्न व्यभिचारोऽत्र दूरार्थैर्मन्दरादिभिः । सूक्ष्मैर्वापरमाण्वायैस्तेषां पक्षीकृतत्वतः ॥८॥
यह कोई नियम नहीं है कि जिस पदार्थ को हम प्रत्यक्ष ज्ञान से नहीं जानते, उस को कोई भी पुरुष प्रत्यक्ष ज्ञान से नहीं जान सकता; क्योंकि बहुत से सूक्ष्म पदार्थ संसार में ऐसे हैं जो कि दुरवीन आदि क द्वारा किसी पुरुष से जाने जा सकते हैं, बहुत से दूरस्थित पदार्थों को हम तुम नहीं जान सकते किन्तु गृद्ध वगैरह पक्षी जान सकते हैं, इसलिये यह बात निःसन्देह माननी चाहिये कि जिन पदार्थों को हम नहीं जान सकते, उन पदार्थों को भी, कोई न कोई पुरुष, प्रत्यक्षप्रमाण से अवश्य जान सकता है । दूसरी बात यह है कि जब दूरदेशस्थित सुमेरु आदि
और सूक्ष्म परमाणु वगैरह पदार्थों में ही हमको प्रमेयत्व हेतु से प्रत्यक्ष ज्ञानका विषयपना सिद्ध करना है तब उन्हीं पदार्थों को लेकर व्यभिचार दोष कसे आ सकता है । यदि पक्ष में ही दोष आने लगेगा तो फिर संसार में कोई भी पदार्थ अनुमान से सिद्ध नहीं होगा। उक्त बात को ग्रन्थकार स्वयं कहते हैं कितत्त्वान्यन्तरतानीह देशकालस्वभावतः । धर्मादीनि हि साध्यन्ते प्रत्यक्षाणि जिनशिनः ।८९