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आप्त-परीक्षा।
...चौद्धमतानुयायी योगाचार संप्रदाय वाले जो यह मानते हैं कि इस जगत में सिवा क्षणिक ज्ञान के और कोई भी पदार्थ नहीं है, यह जो कुछ भी चराचर जगत दिखाई देता है वह सब ज्ञान स्वरूप ही है, यह उन का मानना भी ठीक नहीं है, क्योंकि यह "ज्ञानाद्वैत" विना किसी प्रमाण के यदि स्वयं ही मान लिया जाय तो हम कहते हैं कि इसी प्रकार स्वयं ही वेदान्तियों का माना हुआ पुरुषाद्वैत या ब्रह्माद्वैत भी क्यों न मान लिया जाय।
और यदि किसी हेतु वगैरह से ज्ञानाद्वैत की सिद्धि की जायगी तो फिर ज्ञानाद्वैत के स्थान में हेतु साध्य वगैरह अनेक पदार्थ सिद्ध हो जायँगे, जिस से कि स्वयं ही उनका माना हुआ ज्ञानाद्वैतपना खंडित हो जायगा। इसलिये न वौद्धों का माना हुआ ज्ञानाद्वैत सिद्ध होता है, और न वेदान्तियों का माना हुआ पुरुषाद्वैत ही। इस प्रकार नैयायिक, सांख्य, बौद्ध, व वेदान्ती आदि किसी भी एकान्त वादी का माना हुआ आप्त (परमेश्वर) युक्तिसिद्ध नहीं होता। औरसोऽर्हन्नव मुनीन्द्राणां वन्द्यः समवतिष्ठते । तत्सद्भावे प्रमाणस्य निर्बाधस्य विनिश्चयात् ॥८६॥ __ जैनियों के माने हुए अहंत देव का साधक निम्नलिखित अनुमान प्रमाण मौजूद है इसलिये बड़े २