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वैशेषिकमत- विचार |
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से उस में सम्बन्धपनेका भी निषेध हो जाता है, क्योंकि ऐसा अनुमान हो सकता है, कि " समवाय" सम्बन्ध नहीं है, सर्वथा अनाश्रित होने से, इसलिये समवाय को सम्बन्ध सिद्ध करने के लिये उस को अनाश्रित पदार्थ न मान कर, संबंधियों के आश्रित ही मानना चाहिये । एक एव च सर्वत्र समवायो यदीष्यते । तदा महेश्वरे ज्ञानं समवैति न खे कथम् ॥ ६२ ॥
इस ही प्रकार समवाय को सर्वथा एक ही पदार्थ मानने में भी यह प्रश्न उपस्थित होता है कि जब समवाय सर्वथा एक ही पदार्थ है, तब ज्ञान, समवाय संबंध से महेश्वर में ही क्यों रहता है, आकाशादिक जड़ पदार्थों में क्यों नहीं रहता । इति प्रत्ययोऽप्येष शंकरे न तु खादिषु । इति भेदः कथं सिध्येन्नियामकमपश्यतः ॥ ६३ ॥
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( वैशेषिक ) महेश्वर में ही ज्ञान की प्रतीति होती है, और आकाश आदिक में नहीं होती, इसलिये महेश्वर में ही ज्ञान का समवाय माना जाता है, आकाशादिक में नहीं माना जाता । (जैन) महेश्वर में ही ज्ञान की प्रतीतिका नियम भी आपने विना नियामक के कैसे बना लिया (वैशेषिक )
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