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आत-परीक्षा। आधार और श्राधेय का ज्ञान होने से अनवस्था दोष आता है उस ही प्रकार यहां पर भी आधाराधेय का ज्ञान होने से अनवस्था दोष आता ही है। तस्यानंत्यात्प्रपतृणामाकांक्षाक्षयतोऽपि वा । न दोष इति चेदेवं समवायादिनाऽपि किं ॥५६॥ गुणादिद्रव्ययोभिन्नद्रव्ययोश्च परस्परं । विशेषणविशेष्यत्वसंबधोऽस्तु निरंकुशः॥ ५७ ॥ संयोगःसमवायो वा तद्विशेषोऽस्त्वनेकधा । खातन्त्र्ये समवायस्य सर्वथैक्ये च दोषतः ॥५८॥ - (वैशेषिक) अनवस्था दोष तो तव आ सकता है, जब कि हम विशेषणविशेष्यत्व सम्बन्ध को वास्तव में तो एक ही मानते हों, और किसी दोष को हटाने के लिये हमको अनेक विशेषण विशेष्य सम्बन्ध कल्पना करने पड़ें, किन्तु हम तो वास्तव में ही अनंत विशेषण विशेष्य संम्बन्ध मानते हैं, फिर अनवस्था दोष कैसे आ सकता है । अथवा जब तक जानने वालों की इच्छा रहती है तब तक वे विशेषण विशेष्य सम्बन्ध कल्पना करते रहते हैं, और जब उन की इच्छा नष्ट हो जाती है, तब विशेषण विशेष्य की कल्पना भी शांत हो जाती है, इस प्रकार अनंत विशेषण विशेष्य संबंधों की कल्पना होने