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वैशेषिकमत विचार । उन के सम्बन्ध को समवाय मानने में कोई वाधा नहीं आती । (जैन) आपने जो अयुतसिद्ध पदार्थों के सम्बन्ध को समवाय माना है उस का भी आप के मत से ही खण्डन होता है। क्योंकि आप जिन २ पदार्थों में समवाय मानते हो उनका आधार भी स्वयं ही पृथक् २ मानते हो, जैसे कि आप के मत में तंतुओं और पट का परस्पर में समवाय सम्बन्ध है, और आप स्वयं ही पट का आधार तंतुओं को व तंतुओं का आधार उन के अवयवों को मानते हो। इस तरह आप के मत से ही समवाय सम्बन्ध वालों का भिन्न २ आश्रय सिद्ध हो जाता है, इस कारण परस्पर में अयुतसिद्धि ही नहीं बनती, और अयुतसिद्धि न बनने से फिर भी आप का समवाय सम्बन्ध सिद्ध नहीं होता, और यदि ज्ञान व महेश्वर की लोक व्यवहार की अपेक्षा से अयुतसिदि मान कर परस्पर में समवाय सम्बंध मानोगे, तो भी उस में कुछ महत्व नहीं होगा क्योंकि लौकिकी अयुतसिद्धि तो संयोग सम्बन्ध वाले दूध और जल में भी होती है । किन्तु दूध व जल का परस्पर आप समवाय सम्बंध नहीं मानते। पृथगाश्रयवृत्तित्वं युतसिद्धि नचानयोः । सास्तीशस्य विभुत्वेन परद्रव्याश्रितिच्युतेः ॥४४॥