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आप्त-परीक्षा।
पहले ज्ञान को भी जान लेता है, इस कारण ऊपर कहा हुआ दोष हट जाने से ईश्वर में सर्वज्ञपना बन जाता है, तो भी यह प्रश्न उठता है कि ईश्वर ने अपने पहले ज्ञान को तो दूसरे ज्ञान से जान लिया, परन्तु दूसरे ज्ञान को किस से जाना, यदि कहोगे कि तीसरे ज्ञान से, तो हम पूछेगे कि तीसरे मान को किस से जाना, इस प्रकार चाहे जहां तक चले जाओ, अन्त में एक न एक ज्ञान ऐसा मानना ही पड़ेगा जिस को कोई भी जानने वाला नहीं मिलेगा। उस अन्त के ज्ञान को न जान सकने के कारण फिर भी ईश्वर का एक तो सर्वज्ञपना सिद्ध नहीं हो सकेगा, दूसरे अनवस्था दोष.आ जायगा, और यदि चलते २ कोई ज्ञान अन्त में अपने को व दूसरों को जानने वाला भी अनवस्था दोष हटाने के कारण मान लोगे तो हम पूछते हैं कि पहले ज्ञान ने ही आप का क्या बिगाड़ा है उस को भी क्यों नहीं अपना व दूसरों का जानने वाला मान लेते। क्यों कि कहीं न कहीं तो आप को चल कर एक ज्ञान अपने व पर को जानने वाला मानना पड़ता ही है (वैशेषिक) खैर, महेश्वर का ज्ञान अपने व पर को जानने वाला ही सिद्ध होता है, तो ऐसा ही सही, किन्तु उस ज्ञान को ईश्वर से भिन्न मानने में तो कोई हानि नहीं है।