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वैशेषिकमत-विचार ।
ज्ञान को फल स्वरूप तो माना जाय, किन्तु उस की उत्पत्ति न मानी जाय, तो विना उत्पन्न हुए वह फल ही क्या कहलावैगा । इस लिये ईश्वर के जिस नित्य ज्ञान को वैशेषिक मत वाले संसार के कार्यों का कारण मान कर जगत को बुद्धिमान ईश्वर का बनाया हुश्रा सिद्ध करना चाहते थे, वह ज्ञान न प्रमाण स्वरूप सिद्ध होता है, न प्रमाण व फल उभय स्वरूप,
और न केवल फल स्वरूप ही। इन सब दोषों को दूर करने के कारण थोड़ी देर के लिये बैशेषिक लोग ईश्वर के ज्ञान को अनित्य भी मान लें तो भी उनका निर्वाह नहीं हो सकता । क्योंकिअनित्यत्वे तु तज्ज्ञानस्यानेन व्यभिचारिता। .. कार्यत्वादेर्महेशेनाकरणेऽस्य स्वबुद्धितः॥ २९ ॥ बुद्ध्यन्तरेण तद्दुद्धेः, करणे चानवस्थितिः । नानादिसंततिर्युक्ता, कर्मसंतानतो विना ॥ ३० ॥ _ वह ईश्वर का अनित्य ज्ञान · विना ईश्वर रूप कारण के यदि स्वयं ही उत्पन्न माना जायगा, तो
और कार्यों की उत्पत्ति के लिये भी फिर ईश्वर को कारण मानने की क्या ज़रूरत है । और यदि उस ज्ञान की उत्पत्ति दूसरे ज्ञान से, दूसरे की तीसरे से,