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________________ अनुमान नहीं कहते, क्योंकि वह केवल साधन अज्ञानको ही दूर कर सकता है, इसलिये वह साध्यविषयक ज्ञानको उत्पन्न नहीं कर सकता। ततो यदुक्तं नैयायिकैः “लिङ्गपरामर्शोऽनुमानम्" इति अनुमानलक्षणं तदविनीतविलसितमिति निवेदितं भवति । वयं त्वनुमानप्रमाणस्वरूपलाभे व्याप्तिस्मरणसहकृतो लिङ्गपरामर्शः करणमिति मन्यामहे । स्मृत्यादिस्वरूपलाभे अनुभवादिवत् । तथा हि, धारणाख्योऽनुभवः स्मृतौ हेतुः । तादात्विकानुभवस्मृती प्रत्यभिज्ञाने, स्मृतिप्रत्यभिज्ञानानुभवाः साध्यसाधनविषयास्त: । तद्वल्लिङ्गज्ञानं व्याप्तिस्मरणादिसहकृतमनुमानोत्पत्तौ निवन्धनमित्येतत्सुसङ्गतमेव । इसलिये नैयायिकोंने जो यह अनुमानका लक्षण किया है कि "लिङ्गके परामर्शात्मक ज्ञानको अनुमान कहते हैं" सो ठीक नहीं है। हम तो, ऐसा मानते हैं कि जैसे स्मृति आदिकी उत्पत्तिमें अनुभवादिक कारण हैं, उसी प्रकार अनुमानादिकी उत्पत्तिमें व्याप्तिस्मरणके साथ साथ उत्पन्न हुआ लिङ्गपरामर्श करण है। अर्थात् जैसे स्मृतिमें धारणानामक अनुभव कारण होता है, तथा प्रत्यभिज्ञानमें तत्कालीन अनुभव और स्मृति कारण पड़ती है और तर्कमें साध्य तथा साधनके विषयभूत स्मृति, प्रत्यभिज्ञान, और अनुभव ये तीनों कारण हैं, उसी प्रकार यह कहना भी युक्तिसंगत ही है कि व्याप्तिस्मरणके साथ लिङ्गज्ञान अनुमानकी उत्पत्तिमे कारण है। ननु भवतां मते साधनमेवानुमाने हेतुर्न तु साधनज्ञानं, साधनात्साध्यविज्ञानमनुमानमिति वचनादिति चेन, साधनादित्यत्र निश्चयपथप्राप्ताद्भूमादेरिति विवक्षणात् । अनिश्चयपथप्राप्तस्य धूमादेः साधनत्वस्यैवाघटनात् । तथाचोक्तं श्लोकवा
SR No.022438
Book TitleNyaya Dipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBansidhar Shastri
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year1913
Total Pages146
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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