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________________ ६२ लिये अग्नि धूमका साध्य अथवा गम्य है, और धूम, ज्ञान करानेवाला है इसलिये वह अग्निका साधक अथवा गमक है - एवं जो व्यभिचारका गन्ध भी न सहता हो, अर्थात् जिसमें अतिव्याप्ति आदि कोई दोष न हो, ऐसे सम्बन्ध विशेषको व्याप्ति अथवा अविनाभाव कहते हैं । यह उसीका सामर्थ्य है कि धूमा दिक ही अयादिकका ज्ञान कराते हैं, घटादिक नहीं । क्योंकि, घटादिकके साथ उस अग्निका अविनाभाव निश्चित नहीं है । जिसका दूसरा नाम अविनाभाव है उस व्याप्तिका यथार्थ ज्ञान कराने में जो साधकतम है वही तर्क नामका एक पृथकू प्रमाण है । ऐसा ही श्लोकवार्तिक भाष्य में कहा है कि “साध्य और साधनसम्बन्धी अज्ञानकी निवृत्तिरूप फलमें जो साधकतम है वह तर्क है ।" इस तर्कका ही दूसरा नाम ऊह है । वह तर्क सम्पूर्ण देश और कालका उपसंहार कराता हुआ उस व्याप्तिका ग्रहण करता है । अर्थात् सम्पूर्ण साध्य और साधनके सम्बन्धको सामान्यतया विषय करता है । किमस्योदाहरणम् ? उच्यते, यत्र यत्र धूमवत्त्वं तत्र तत्रानिमचमिति । अत्र हि धूमे सति भूयो म्युपलम्भे 'सर्वत्र सर्वदा धूमोऽग्निं न व्यभिचरति एवं सर्वोपसंहारेणाविनाभाविज्ञानं पश्चादुत्पन्नं तर्काख्यं प्रत्यक्षादेः पृथगेव । प्रत्यक्षस्य सन्निहितदेश एव धूमाग्निसम्बन्धप्रकाशनान्न व्याप्तिप्रकाशकत्वम् । सर्वोपसंहारवती हि व्याप्तिः । ( प्रश्न ) - इसका उदाहरण क्या है ? (समाधान) - जहां जहां धूम है वहां वहां अग्नि है । अर्थात्, किसी स्थानमें धूमके होनेपर अग्निका सद्भाव देखा, इसी प्रकार दूसरे तीसरे आदि और भी कई स्थानों में देखा और देखनेके पीछे निश्चय किया कि “किसी क्षेत्र और किसी काल में भी धूम अग्निसे व्यभिचरित नहीं होता है ।" इस प्रकार सब देशकालके उपसंहारपूर्वक, अर्थात् सामान्यरूपसे
SR No.022438
Book TitleNyaya Dipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBansidhar Shastri
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year1913
Total Pages146
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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