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________________ ५४ जाता है। इस लिये यह प्रतीति (स्मृति) “वह" ऐसी सूचना करनेवाली और पूर्वानुभूत पदार्थको विषय करनेवाली होती है। जिस पदार्थका पहले कभी अनुभव नहीं किया उस पदार्थकी स्मृति नहीं हो सकती । इस लिये स्मृतिका मूल कारण धारणारूप अनुभव ही है। अवग्रहादिक होनेपर भी जबतक धारणा न हो तबतक स्मृति नहीं हो सकती। धारणासे आत्मामें इस प्रकारका संस्कार उत्पन्न होता है कि जिससे उस आत्माको कालान्तरमें भी उस विषयका स्मरण होजाता है। इससे यह सिद्ध हुआ कि धारणाके विषयमें उत्पन्न होनेवाले "वह" इत्याकारक ज्ञानको स्मृति कहते हैं। नन्वेवं धारणागृहीत एव स्मरणस्योत्पत्तौ गृहीतग्राहित्वादप्रामाण्यं प्रसज्यत इति चेन्न, विषयविशेषसद्भावादीहादिवत् । यथा ह्यवग्रहादिगृहीतविषयाणामीहादीनां विषयविशेषसद्भावात्स्वविषयसमारोपव्यवच्छेदकत्वेन प्रामाण्यं तथा स्मरणस्थापि धारणागृहीतविषयप्रवृत्तावपि प्रामाण्यमेव । धारणाया हीदन्तावच्छिन्नो विषयः, स्मरणस्य तु तत्तावच्छिन्नः । तथा च स्मरणं स्वविषयास्मरणादिसमारोपव्यवच्छेदकत्वात्प्रमाणमेव । तदुक्तं प्रमेयकमलमार्तण्डे "विस्मरणसंशयविपर्यासलक्षणः समारोपोस्ति तन्निराकरणाचास्याः स्मृतेः प्रामाण्यम्" इति । यदि चानुभूते प्रवृत्तमित्येतावता सरणमप्रमाणं स्यात्तर्हि अनुमितेऽनौ पश्चात्प्रवृत्तं प्रत्यक्षमप्यप्रमाणं स्यात् ।। इसपर यह शङ्का करना कि “धारणाके विषयमें ही स्मरणकी उत्पत्ति होती है इसलिये यह स्मृति गृहीतग्राहिणी होनेसे अ. प्रमाण है"ठीक नहीं है। क्योंकि, ईहादिककी तरह इनके विषयमें विशेषता है । अर्थात् जिस प्रकार ईहादि ज्ञानोंकी प्रवृत्ति अवग्रहादिके द्वारा ग्रहण किये हुए विषयमें ही होनेपर भी उनके
SR No.022438
Book TitleNyaya Dipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBansidhar Shastri
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year1913
Total Pages146
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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