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________________ विषयके घटत्वादिक सामान्य आकारको और व्यक्तिरूप विशेष आकारको एक साथ ही प्रकाशित करता है उसी प्रकार परोक्षप्रमाण भी सामान्यविशेषात्मक वस्तुको ही प्रकाशित करता है, केवल सामान्यको नहीं । इसलिये परोक्षप्रमाणका लक्षण 'सामान्यमात्रको विषय करना नहीं किन्तु 'अवैशद्य' है। सामान्यविशेषयोरेकतरविषयत्वे तु प्रमाणत्वस्यैवानुपपत्तिः, सर्वप्रमाणानां सामान्यविशेषात्मकवस्तुविषयत्वाभ्यनुज्ञानात् । तदुक्तं “सामान्यविशेषात्मा तदर्थो विषयः" इति । तस्मात्सुष्ठूक्तम् 'अविशदावभासनं परोक्षम्' इति । - प्रमाणका विषय यदि सामान्य और विशेष इन दोनों से एक ही माना जायगा तो प्रमाणत्व ही नहीं बन सकेगा। क्योंकि, ऐसा मानागया है कि जितने प्रमाण हैं उतने सभी सामान्यविशेषात्मक वस्तुको विषय करते हैं। इसीलिये ऐसा कहा है कि "प्रमाणका विषय सामान्यविशेषात्मक पदार्थ है।" अत एव परोक्षका यही लक्षण ठीक कहा गया है कि "जिसका प्रतिभास विशद न हो वह परोक्ष है।" । तत्पश्चविधं स्मृतिः प्रत्यभिज्ञानं तर्कोऽनुमानमागमश्चेति । पञ्चविधस्याप्यस्य परोक्षस्य प्रत्ययान्तरसापेक्षत्वेनैवोत्पत्तिः । तद्यथा, स्मरणस्य प्राक्तनानुभवापेक्षा, प्रत्यभिज्ञानस्य स्मरणानुभवापेक्षा, तर्कस्यानुभवस्मरणप्रत्यभिज्ञानापेक्षा, अनुमानस्य १ क्योंकि वस्तु सामान्यविशेषात्मक है । उसका एकरूपसे अर्थात् सामान्यरूपसे अथवा विशेषरूपसे ग्रहणकरनेवाला ज्ञान मिथ्याज्ञान ही होगा, सम्यरज्ञान (प्रमाण ) नहीं । अथवा सामान्यको छोड़कर विशेषवरूप वस्तु और विशेषको छोड़कर सामान्यरूप वस्तु हो नहीं सकती अतः खरविषाणवत् अवस्तुको विषय करनेवाला ज्ञान अप्रमाण ही है।
SR No.022438
Book TitleNyaya Dipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBansidhar Shastri
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year1913
Total Pages146
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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