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हिंदीबंगानुवादसहितंपरीक्षामुखं । ६७ का दृष्टांत स्वरूप यह प्रत्यक्षबाधित आकंचित्करहेत्वाभासका उदाहरण है ) तथा यह अकिंचित्कर हेत्वाभासकास्वरूप वही निर्दिष्ट होता है जहां हेतुके लक्षणकी छानबीन की जाती है वादकाल में नहिं क्योंकि वाद में यदि व्युत्पन्न द्वारा दुष्टपक्षका प्रयोग हो जायेगा तो उस पक्षके दुष्ट होनेसे उसका प्रयोग भी दुष्ट ही समझा जायगा ॥३५॥३६॥३७॥३८॥३९॥
बंगला-ये साध्य स्वयंसिद्ध वा प्रत्यक्षादि बाधित ऐ साध्येर सिद्धिर जन्य हेतु प्रयोग कारले ताहाते कोन फलइ हयना सुतरां ताही आकिंचित्करहेत्वाभास कथित हय । 'येमन शब्द श्रवणमाह्य कारण उहा शब्द' । ऐ स्थल शब्देर श्रावणत्व स्वयंसिद्ध उहा साधन कारते हेतु प्रयोग व्यर्थ सुतरां उहाके अकिंचित्कर कहा याय । प्रत्यक्षादि बाधितस्थल आकिंचित् कर हेत्वाभास येमन 'अग्नि शीतल केनना उहा द्रव्य येमन जैसे', एस्थल अग्निर शैत्य प्रत्यक्षवाधित हओयाय हेतु प्रयोग द्वाराय ओ इहा सिद्ध हयना सुतरां ऐ स्थल हेतु प्रयोग अकिंचित्करहेत्वाभास हइल । एइ अकिंचितकर हेत्वाभास दोष चतुर लक्षण निरुपण कालेइ निदिष्ट हय, वांदकाले नहे, कारण वादकाले व्युत्पन्न लोक द्वारा यदि दुष्ट पक्षेर उल्लेख हय तबइ ताहार प्रयोग ओ दुष्ट पूमाणित हय ॥३५॥३९॥
दृष्टांताभासा अन्वयेऽसिद्धसाध्यसाधनोभयाः। अपौरुषेयः