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सनातऩजैनग्रंथमालायां ।
अपौरुषेय येहतु अमूर्त येमन इंन्द्रिय सुख, परमाणु ओ घट । एखाने इंन्द्रिय सुख साध्यविकल दृष्टान्त केनना इंद्रियसुख अपौरुषेय नहे, प्रत्युत ताही पुरुषसंपाद्यइ हय । परमाणु साधन विकल दृष्टान्त केनना परमाणुते रूप रसादि थाकाय ताही मूर्त्त द्रव्यइ, अमूर्त नहे । घट उभयविकल केनना ताहा पौरुषेय एवं मूर्त्त पदार्थ । अपौरुषयत्व रूप साध्य वा अमूर्त्तत्व रूप साधन घटे नाइ । एइ दृष्टान्तत्रये यथाक्रमे साध्य विकलतादि बुझिया लइवे । उपर्युक्त अनुमाने यैये अमूर्त्त सेसे अपौरुषेय इहाइ वस्तुतः अन्वयव्याप्ति, किन्तु यदि एरुप व्याप्तिना देखाया ये अपौरुषेय से अमूर्त्त एरुप व्याप्ति देखाइ तबे तहा अन्वय दृष्टान्ताभास कथिते हएवे, केनना एइ व्याप्तिते विद्युत् अन्तर्भावे व्यभिचार हइवे । विद्युत् अपौरुषेय किन्तु ताहा अमूर्त्त नहे ||४०-४३॥
व्यतिरेकसिद्धतद्व्यतिरेकाः परमाण्विद्रियसुखाकाशवत् विपरीतव्यतिरेकश्च यन्नामूर्त तन्नापौरुषेयं ॥ ४४|४५ ||
हिंदी -व्यतिरेकदृष्टांताभासकै तीन भेद है साध्य व्यतिरेकविकल, साधनव्यतिरेकविकल एवं साध्य साधन उभय व्यतिरेक विकल । यथा - शब्द अपौरुषेय है क्योंकि अमूर्त है इस उक्त उदाहरणमें ही साध्य व्यतिरेक विकल दृष्टांत है क्योंकि अपौरुषेयत्व रूपसाध्यका व्यतिरेक ( अभाव ) पौरुषेयत्व होता है और वह परमाणुर्मे नहिं रहता । साधन