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________________ (७५) [चतुर्थ परिच्छेद विवेचन-आगम के यहाँ दो उदाहरण हैं । इन वाक्यों को सुनने से होने वाला ज्ञान आगम कहलाता है, और ये दोनों वाक्य उपचार से पागम हैं। आगे प्राप्त के दो भेद बतायेंगे, उन्हीं की अपेक्षा यहाँ दो उदाहरण बताये हैं : प्राप्त का स्वरूप अभिधेयं वस्तु यथावस्थितं यो जानीते, यथाज्ञानं चाभिधत्ते स प्राप्तः ॥ ४ ॥ तस्य हि वचनमविसंवादि भवति ॥ ५ ॥ - अर्थ-कही जाने वाली वस्तु को जो ठीक-ठीक जानता हो और जैसी जानता हो वैमी ही कहता हो, वह प्राप्त है । ___ उस यथार्थज्ञाता और यथार्थ वक्ता का कथन ही विसंवाद रहित होना है। - विवेचन-मिथ्या भाषण के दो कारण होते हैं-(१) अज्ञान और (२) कषाय । मनुष्य किमी वस्तु का स्वरूप ठीक-ठीक नहीं जानता हो फिर भी उस वस्तु का कथन करे तो उसका कथन मिथ्या होगा । अथवा वस्तु का स्वरूप ठीक-ठीक जानकर भी कोई कषाय के कारण अन्यथा भाषण करता है। उसका भी कथन मिथ्या होता है । जिस पुरुष में यह दोनों कारण न हो अर्थात् जिसे वस्तु का सम्यग्ज्ञान हो और अपने ज्ञान के अनुसार ही भाषण करता हो, उसका कथन मिथ्या नहीं हो सकता । ऐसे ही पुरुष को प्राप्त कहते
SR No.022434
Book TitlePramannay Tattvalok
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachandra Bharilla
PublisherAatmjagruti Karyalay
Publication Year1942
Total Pages178
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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