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[ तृतीय परिच्छेद
विवेचन-यहाँ अनुमान के पाँच अवयव बताये गये हैं'परिणतिमान्' साध्य है, 'प्रयत्नानन्तरीयकत्व' हेतु है, 'स्तम्भ' साधर्म्य दृष्टान्त और 'वान्ध्येय' वैधर्म्य दृष्टान्त है, 'शब्द प्रयत्नानन्तरीयक होता है' उपनय है, 'अतः वह परिणतिमान है' निगमन है।
जो अल्प देश में रहे वह व्याप्य कहलाता है और जो अधिक देश में रहे वह व्यापक कहलाता है। जैसे परिणतिमत्व मेघ, इन्द्रधनुष और घट-पट आदि में रहता है पर 'प्रयत्नानन्तरीयकत्व' सिर्फ घट-पट आदि में रहता है. मेघ आदि प्राकृतिक पदार्थों में नहीं रहता। इस कारण प्रयत्नानन्तरीयकत्व और परिणतिमत्व व्यापक है। यहाँ परिणतिमत्व साध्य से अविरुद्ध प्रयत्नानन्तरीयकत्व रूप व्याप्य हेतु की उपलब्धि है।
अविरुद्ध कार्योपलब्धि __ अस्त्यत्र गिरिनिकुञ्ज धनञ्जयो, धूमसमुपलम्भात् , इति कार्यस्य ॥ ७८ ॥
अर्थ-इस गिरिनिकुञ्ज में अग्नि है, क्योंकि धूम है. यह अविरुद्ध कार्योपलब्धि का उदाहरण ।
विवेचन-यहाँ अग्नि साध्य से अविरुद्ध धूम-कार्य-की उपखब्धि है।
अविरुद्ध कारणोपलब्धि - भविष्यति वर्ष, तथाविधवारिवाहविलोकनात्, इति कारणस्य ।। ७६ ॥