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________________ (५६) [प्रथम परिच्छेद न हो और जिसके सहकारी अन्यान्य सब कारण विद्यमान हों, ऐसे विशिष्ट कारण को ही हेतु माना गया है, क्योंकि ऐसे कारण के होने पर कार्य की उत्पत्ति अवश्य होती है। (२) बौद्ध स्वयं भी कारण को हेतु मानते हैं । अंधेरी रात्रि में (जब रूप दिखाई न पड़ता हो ) कोई आम का रस चूसता है। उस रस से वह रस को उत्पन्न करने वाली सामग्री ( पूर्व क्षणवर्ती रस और रूप आदि ) का अनुमान करता है । यहाँ चूमा जाने वाला रस कार्य है और पूर्वक्षणवर्ती रस रूप आदि कारण हैं। यह कार्य से कारण का अनुमान हुआ। इसके पश्चात् आम चूमने वाला उस कारणभूत रूप से वर्तमान कालीन रूप का अनुमान करता है। यह कारण से कार्य का अनुमान कहलाया। इस प्रकार बौद्ध कारण से कार्य का अनुमान स्वयं करते हैं, फिर कारण को हेतु क्यों न माने ? शंका–वर्तमान रस से पूर्व क्षणवर्ती रस का ही अनुमान होगा, रस के साथ रूप आदि का क्यों श्राप कहते हैं ? समाधान-बौद्धों की मान्यता के अनुसार पूर्वकालीन रस और रूप आदि मिलकर ही उत्तरकालीन रस उत्पन्न करत है । अतएव वर्तमानकालीन रस से पूर्वकालान रस के साथ रूप आदि का भी अनुमान होता है । अलवत्ता पूर्वकालीन रस उत्तरकालीन रस में उपादान कारण होता है और रूप सहकारी कारण होता है। यही नियम स्पर्श आदि के लिए समझना चाहिए । प्रत्येक कारण सजातीय के प्रति उपादान कारण और विजातीय के प्रति सहकारी कारण होता है। शंका-अच्छा, वर्तमान कालीन रूप तो प्रत्यक्ष देखा जा
SR No.022434
Book TitlePramannay Tattvalok
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachandra Bharilla
PublisherAatmjagruti Karyalay
Publication Year1942
Total Pages178
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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