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प्रमाण-नय-तत्त्वालोक]
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माना जाता है अतः लोक-व्यवहार के अनुरोध से उसे भी प्रत्यक्ष कहा है।
पारमार्थिक प्रत्यक्ष के भेद तद् विकलं सकलं च ॥१४॥
अर्थ-पारमार्थिक प्रत्यक्ष दो प्रकार का है- (१) विकल पारमार्थिक प्रत्यक्ष और (२) सकल पारमार्थिक प्रत्यक्ष।
विवेचन-जो वस्तुतः प्रत्यक्ष हो किन्तु विकल अर्थात् अधूग या असम्पूर्ण हो उसे विकल पारमार्थिक प्रत्यक्ष कहते हैं और जो संपूर्ण है-कोई भी पदार्थ जिस प्रत्यक्ष से बाहर नहीं है, उसे सकल पारमार्थिक प्रत्यक्ष कहते हैं।
विकलपारमार्थिक प्रत्यक्ष के भेद तत्र विकलमवधिमनःपर्यायज्ञानरूपतया द्वधा ॥२०॥ ____अर्थ-विकल पारमार्थिक प्रत्यक्ष दो प्रकार का है(१) अवधिज्ञान और (२) मनःपर्याय ज्ञान ।
अवधिज्ञान का स्वरूप _ अवधिज्ञानावरणविलयविशेषसमुद्भवं रूपिद्रव्यगोचरमवधिज्ञानम् ॥२१॥
अर्थ-अवधिज्ञानावरण कर्म के क्षयोपशम से उत्पन्न होने वाला, भवप्रत्यय तथा गुणप्रत्यय, रूपी द्रव्यों को जानने वाला ज्ञान अवधिज्ञान कहलाता है।