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प्रमाण-नय तत्त्वालोक]
(८)
अर्थ-'अरे क्या है ?' इस प्रकार का अत्यन्त सामान्य ज्ञान होना अनध्यवसाय है।
जैसे-जाते समय तिनके के स्पर्श का ज्ञान ।
विवेचन-रास्ते में जाते समय, चित्त दूसरी तरफ लगा रहने से तिनके का पैर से स्पर्श होने पर, 'यह क्या है' इस प्रकार का विचार आता है। इसी को अनध्यवसाय कहते हैं। इस ज्ञान में अतद्रूप वस्तु तद्प मालूम नहीं होती, इस कारण समारोप का लक्षण पूर्ण रूप से अनध्यवसाय में नहीं घटता, किन्तु अनध्यवसाय के द्वारा यथार्थ वस्तु का ज्ञान न होने के कारण इसे उपचार से समारोप माना गया है। . संशय और अनध्यवसाय में भेद-संशय ज्ञान में भी यद्यपि विशेष वस्तु का निश्चय नहीं होता फिर भी विशेष का स्पर्श होता है; परन्तु अनध्यवसाय संशय से भी उतरती श्रेणी का ज्ञान है। इसमें विशेष का स्पर्श भी नहीं है और इसी कारण इसमें अनेक अंश भी प्रतीत नहीं होते।
- 'पर' का अर्थ ज्ञानादन्योऽर्थः परः ॥१५॥ अर्थ-ज्ञान से भिन्न पदार्थ 'पर' कहलाता है।
विवेचन-प्रमाण का लक्षण बताते समय कहा गया था कि जो ज्ञान अपना और पर का निश्चय करता है वह प्रमाण है । सो यहाँ 'पर' शब्द का अर्थ स्पष्ट किया गया है।