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प्रमाण-नय-तत्त्वालोक] . (६)
प्रमाण व्यवसायात्मक है, क्योंकि वह प्रमाण है, जो व्यवसायात्मक नहीं होता वह प्रमाण भी नहीं होता; जैसे घट ।
समारोप
अतस्मिस्तदध्यवसायः समारोपः ॥७॥ स विपर्ययसंशयानध्यवसायभेदात् त्रेधा ॥८॥
अर्थ-अतद्-रूप वस्तु का तद्रूप ज्ञान हो जाना अर्थात् जो वस्तु जैसी नहीं है वैसी मालूम हो जाना, समारोप कहलाता है ।
. समारोप तीन प्रकार का है-(१) विपर्यय (२) संशय (३) अनध्यवसाय ।
___-विपर्यय-समारोप विपरीतैककोटिनिष्टङ्कनं विपर्ययः ।।६।।
यथा-शुक्तिकायामिदं रजतमिति ॥१०॥
अर्थ-एक विपरीत धर्म का निश्चय होना विपर्यय-ज्ञान ( समारोप ) कहलाता है।
जैसे-सीप में 'यह चांदी है' ऐसा ज्ञान होना ।
विवेचन-सीप को चांदी समझ लेना, रस्सी को सांप समझ लेना, सांप को रस्सी समझ लेना, आदि-आदि इस प्रकार के मिथ्या ज्ञान को विपरीत या विपर्यय समारोप कहते हैं। इस ज्ञान में वस्तु का एक ही धर्म जान पड़ता है और वह उल्टा जान पड़ता है। अतएव यह मिथ्या-ज्ञान है-प्रमाण नहीं है।