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हिन्दी प्रमेयरत्नमाला |
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यहु जो हेतुपणां है— अर्थकै ज्ञानकी उत्पत्तिका कारणपणां है सो ही ग्राह्यपणां है, कैसा है यह हेतुपणां ? अर्थके आकारकूं ज्ञानमें अर्पण करनेविषै समर्थ है । भावार्थ — जो अर्थकै ज्ञानका उपजावणापणां है सो ही तिस अर्थके आकार होनां ज्ञानकै करे है ऐसी बौद्धकै आशंका हो सूत्र कहै है ;
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अतज्जन्यमपि तत्प्रकाशकं प्रदीपवत् ॥ ८ ॥
याका अर्थ — जो ज्ञान अर्थकरि न उपजै है तौऊ अर्थका प्रकाशक है जैसे दीपक घट आदि अर्थतैं उपज्या नांही तौऊ तिनिका प्रकाशक है तैसें जाननां । तहां अर्थकार जन्य नांही है तौऊ ताका प्रकाशक है ऐसा अर्थ भया सो इहां ' अतज्जन्य' ऐसा शब्द है सो उपलक्षणरूप है ताकरि अतदाकार कहिये अर्थाकार न होय तौऊ ताका प्रकाशक है ऐसा भी ग्रहण करनां । बहुरि दोऊ ही अर्थ मैं प्रदीपका दृष्टान्त है जैसैं दीपककै घटादिककरि जन्यपणां नांही तथा तिनिकै आकारपणां होय नांही तौऊ तिनिकं प्रकाशै है तैसें ज्ञानकै भी है ऐसा अर्थ भया ॥ ८ ॥
इहां बौद्ध कहै है— जो अर्थतैं तौ उपज्या नांही अर अर्थंकै आकर न भया ऐसे ज्ञानकै अर्थका साक्षात्कारीपणां कहोगे तौ नियमरूप दिशा देश कालवर्त्ती जे पदार्थ तिनिका प्रकाश प्रति नियमका अभाव होनेंतैं सर्व ही विज्ञान अप्रतिनियत विषय कहिये न्यारे न्यारे नियमरूप विषय जाका होय ऐसा न ठहरेगा ऐसी बौद्धकी आशंका होतैं सूत्र कहै है;
स्वावरणक्षयोपशमलक्षणयोग्यतया हि प्रतिनियतमर्थं व्यवस्थापयति ॥ ९ ॥
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याका अर्थ — अपनां आवरण जो ज्ञानावरण वीर्यान्तराय कर्म ताका क्षयोपशम सो है लक्षण जाका ऐसी जो योग्यता ताकरि प्रति