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हिन्दी प्रमेयरत्नमाला।
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चार्वाक मतवाला एक प्रत्यक्ष प्रमाण ही मानै है ताविर्षे अनुमानका अन्तर्भाव होय सकै नांही है जाते अनुमानतें प्रत्यक्ष विलक्षणस्वरूप है, तिनि दोऊनिकै सामग्री अर स्वरूप भेदरूप हैं-न्यारे न्यारे हैं। __ इहां चार्वाक कहै है;-प्रमाण तो एक प्रत्यक्ष ही है दूजा अनुमानदिकरूप परोक्षप्रमाण कहो है सो परोक्षप्रमाण नांही है जातें परोक्षप्रमाणमैं विसंवाद है-बाधा आवै है। सो दिखावै है;-देखो, अनुमान प्रमाणका स्वरूप ऐसा कह्या है जो निश्चित अविनाभावस्वरूप जो हेतु तारौं लिंगी जो साध्य ताकै विर्षे जो ज्ञान सो अनुमान है, ऐसा अनुमानप्रमाण माननेवालाका मत है । तहां लिंग दोय प्रकार, तामैं एक स्वभावलिंग ताविर्षे बहुल अन्यथापणां देखिये है। सो ही कहिये हैं;कषायला रसकरि सहित जे आमला ते इस देशकालसंबंधी देखिये हैं ते देशान्तर कालान्तर तथा अन्य द्रव्यका संबंध होते अन्यप्रकार भी देखिये हैं तातें जो स्वभाव हेतुकरि अनुमान कीजिये है तौ तामैं व्यभिचार आवै ऐसा अनुमान कीजिये जो आमला होय हैं ते कषायला होय हैं तो कोई देशकालमैं अन्य द्रव्यके संबंध” रस अन्यप्रकार होय तब अनुमानमैं व्यभिचार आवै । अथवा कोई देशमैं आम्रवृक्ष है कोई देशमैं लता-आकार आम्र है अथवा कोई देशमैं शीतूं लताकू कहैं हैं, तहां कोई ऐसा अनुमान करै जो यह वृक्ष है जातै शीतूं है तौ जिस देशमैं लताकू शीतूं कहै है तातै व्यभिचार भया । ऐसैं ही कार्यलिंग मानिये तामैं भी व्यभिचार है जैसैं धूमतें अग्निका अनुमान कीजिये है सो धूम इन्द्रजालके घड़ेमैं अग्नि विना देखिये है तथा बंबीमैं धूम अग्नि विना नीसरती देखिये है ता” अग्निका अनुमान व्यभिचारी होय है। तातें एक प्रत्यक्ष ही प्रमाण है, याहीकै अविसंवादकपणा है--निर्बाध सत्यपणां है।