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हिन्दी प्रमेयरत्नमाला ।
आमैं इहां उल्लेख कहै हैं;-( दृष्टान्त दार्टान्तिकका उदाहरणकू उल्लेख कहिये );
घटमहमात्मना वेभि ॥८॥ याका अर्थ—मैं आपही करि घट है ताहि जानूं हूं। इहां 'अहं' ऐसा तौ कर्ता है, 'घट' कर्म है, 'आत्मना' करण है, 'वेद्मि' ऐसी क्रिया है । सो जैसैं आप आपकरि घट वस्तुकू जानैं है तैसैं आप आपकरि आपकू भी जानैं है ऐसा जाननां ॥ ८ ॥
आगैं इहां नैयायिक तौ कहै है;-ज्ञान है सो अन्यपदार्थकू ही निश्चय करै है-कर्महीकू जानैं है आपकू नांही जानैं है, आप करण है तथा आत्मा जो कर्ता है ताकू भी नांही जानैं है तथा फलरूप क्रिया है ताकू भी नांही जानैं है । इहां जैनमत अपेक्षा अज्ञानका नाश होनां हेयोपादेयका जाननां तथा वीतरागतारूप होनां ऐसा प्रमाणका फल जाननां । बहुरि मीमांसकनिमैं भट्टमतवाले कहै हैं—जो कर्ता अरु कर्मकू ही ज्ञान जान है, आप करण है सो आपकू आप नांही जान है अर क्रियारूप फलकू भी नांही जान है। बहुरि मीमांसकमतमैं ही जैमिनीय मत हैं ते हैं हैं कर्ता कर्म क्रियाकू ज्ञान जानै है अरु आप करण है सो आपकू आप नांही जानैं है । बहुरि मीमांसकमतमैं ही प्रभाकरका मत है सो कहै है-कर्म क्रियाही• ज्ञान जानै है आत्मा कर्ताकू अर आप करण• नांही जानैं है । सो ये सर्वही मत प्रतीतिबाधित हैं ऐसा दिखावता संता सूत्र कहैं हैं;
कर्मवत्कर्तृकरणक्रियाप्रतीतेः ॥ ९॥ याका अर्थ-ज्ञानविषं जैसैं कर्मकी प्रतीति है तैसे ही कर्ता, करण, क्रियाकी प्रतीति है ऐसैं पूर्वसूत्रका हेतुरूप यहु सूत्र है; तातै पंचमी