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स्वर्गीय पं० जयचंदजी विरचित
इच्छुक जे लघु अनंतवीर्य आचार्य ते तिसकी आदि वि नास्तिकताका परिहार, शिष्टाचारपालन, पुण्यकी प्राप्ति, निर्विघ्न शास्त्रकी समाप्ति आदि फलकू चाहते संते श्लोक कहैं हैं;
नतामरशिरोरत्नप्रभाप्रोतनखत्विषे ।
नमो जिनाय दुर्वारमारवीरमदच्छिदे ॥ १॥ याका अर्थ-टीकाकार कहै हैं जो जिन कहिये कर्मशत्रुके जीतने हारे जे अरहंत परमेष्ठी तिनि सर्वनिके अर्थि हमारा नमस्कार होहु । कैसे हैं जिन--नमे जे देवनिके मस्तक तिनिके मुकुटनिके मणिनिकी प्रभा तिसविर्षे पोई है मिली है चरणके नखनिकी किरण जिनिकी । भावार्थ-अरहंत परमेष्टीकू च्यारि प्रकारके देव नमस्कार करै हैं । बहुरि कैसे हैं कठिन है निवारन जाका ऐसा जो कामरूप सुभट ताका मदके छेदन हारे हैं । इस श्लोकमैं मारवीरमदच्छिदे ऐसा विशेषण जिनका है ताका ऐसाभी अर्थ है;—मा कहिये लक्ष्मी ताहि राति कहिए दे ताकू मार कहिए, सो इस मार शब्दके अर्थ तैं मोक्षमार्गके दाता भये । बहुरि वीर शब्दकरि वि कहिए विशेष करि ईर कहिए समस्त पदार्थनिकू जाननहारे हैं ऐसे सर्वज्ञ भये । बहुरि मदच्छित् कहिए मानकषायके छेदनहारे हैं, ऐसैं मद ऐसा उपलक्षणपदतै सर्व रागादिकका नाश करन हारे भये ऐसैं " मोक्षमार्गस्य नेतारं " इत्यादि सूत्रकी टीका विर्षे कहे जे आप्तके तीनूं विशेषण ते सिद्ध भये । बहुरि अन्य प्रकार कहै हैं;—मा कहिये प्रमेयका प्रमाणरूप जाननहारा केवलज्ञान सोई भया रवि कहिये सूर्य, बहुरि इरा कहिये वाणी दिव्यध्वनि, ये दोऊ कैसे ? दुर्वार कहिये खोटे हेतु दृष्टांतनिकरि निवारन जिनका न होय ऐसे जाके होय सो दुर्वारमारवीर कहिये । बहुरि मद कड्ने सर्व रागादिक लेने तिनकौं छेदै सो मदच्छित्