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स्वर्गीय पं० जयचंदजी विरचित
जातें अन्वयरूप आकारका अर स्थूल आकारका प्रत्यक्ष देखनेमैं आवनां कह्या ही है । बहुरि बौद्धनैं कह्या जो परमाणुकै एक देशकरि अर सर्व स्वरूपकार संबंध नाही बर्णं है, सो याका परिहार यह ही-जो ऐसैं हम भी संबंध नाही मानें है, हम तो ऐसैं मानें हैं—जो लूखा चीकनाकै समान जातीयकै तथा विजातीयकै दोय अधिक गुण होय तौ कथंचित् स्कंधकै आकार परिणामै ताकै संबंध मानें हैं । बहुरि बौद्धनैं जो अवयवीका अवयवनिविर्षे वृत्तिविकल्प आदि दूषण कह्या, तहां अवयवीकी वृत्ति ही जो न वर्षे तौ अवयवी वत्तै ही नांही है ऐसैं कहनां था, एक देश आदि विकल्प न कहना था जातै एक देश आदि विकल्पकै तौ अन्य विकल्प विशेषतै अविनाभावीपणां है। सो ही कहिये है-अवयवी अवयवनिविषं एक देशकरि नाही व है, सर्वस्वरूपकार भी नाही वत्तै है ऐसैं कहतें ऐसा आया-जो अन्य प्रकारकरि व” है, अर ऐसैं न मानिये तो, नांही वत्” है—ऐसैं ही कहनां । ऐसैं विशेषका निषेधकै अवशेषका अंगीकाररूपपणां है । तातें कथंचित् तादात्म्यारूपकरि अवयवीकी अवयवनिविर्षे वृत्ति है ऐसा निश्चय कीजिये है, जहां जे कहे दोष तिनिका अवकाश नांही है । बहुरि विरोध आदि दोषका निषेध आगैं करसी यात इहां विस्तार नाही किया है । बहुरि जो वस्तुकै एकक्षणस्थायिपणां विर्षे हेतु कह्याजो जिस भाव प्रति इत्यादि, सो भी अहेतु है जातें हेतु असिद्ध आदि दोषकरि दूषित है । तहां प्रथम तौ नाशविर्षे अन्यकी अपेक्षा” रहित. पणां हेतु कह्या सो असिद्ध है जातें घटादिकका अभावकै मुद्गर आदिके व्यापारका अन्वय व्यतिरेकका अनुसारीपणांतॆ तिसके अभाव प्रति कारणपणां है, मुद्गराकी दिये घट फूटै न दे तौ न फूटै । इहां आशंका करै-जो मुद्गराकी देनां कपालकी उत्पत्तिकू कारण है, अभाव तौ