________________
चतुर्थ-समुद्देश । -::K
(४) आरौं प्रमाणकी स्वरूप संख्या विप्रतिपत्तिका निराकरण करि अब प्रमाणका विषयकी विप्रतिपत्तिका निराकरणकै अर्थि सूत्र कहै है;.. सामान्यविशेषात्मा तदर्थो विषयः॥१॥
याका अर्थ—सामान्य विशेष स्वरूप तिस प्रमाणका अर्थ है ताकू विषय कहिये । तहां 'तत्' शब्दकरि प्रमाण लेनां ताकै ग्रहण करने योग्य जो अर्थ सो विषय है ताका विशेषण सामान्य अर विशेष है आत्मा जाका, ऐसा है । सामान्य अर विशेषका स्वरूप आगैं कहसी। इनि दोऊनिका ग्रहण तथा आत्मशब्दका ग्रहण है सो केवल सामान्यहीकै तथा केवल विशेषहीकै तथा केवल दोऊ स्वतंत्रकै प्रमाणका विषयपणांका प्रतिषेधकै अर्थि है, न्यारे न्यारे ही केवल विषय नाही ।
तहां केई तौ सत्ता सामान्यहीकू प्रमाणका विषय मानें हैं तिनिमैं सत्तामात्र देह जो परम ब्रह्म ताकै तौ प्रमाणका विषयपणां का निराकरण पूर्व सर्वज्ञके विवादवि कियाहीथा । जातें सत्ता मात्रकै केवल सामान्यपणां है सो प्रमाणका विषय नाही । बहुरि तिस शिवाय अन्य विचारिये है, तहां सांख्यमत वाले तो प्रधानकू सामान्य कहैं हैं सो प्रमाणका विषय मानें हैं, ताका वचनका श्लोक है, ताका अर्थ ऐसा -जो सत्त्व रजः तम ये तीन जामै पाइये, बहुरि अविवेकी कहिये महत्
१ त्रिगुणमविवेकि विषयः सामान्यमचेतनं प्रसवधर्मि। व्यक्तं तथा प्रधानं तद्विपरीतस्तथा च पुमान् ॥