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________________ १२८ स्वर्गीय पं० जयचंदजी विरचित याका अर्थ-इस बराबर ताखड़ीकैविर्षे डांडी एक वोर ऊंची नाही है जानैं दूसरी वोर नींची डांडीकी अनुपलब्धि है । एक वोर नीचापणां एक वोर ऊंचापणां सहचर हैं तिनिमैं एकका निषेध साध्य एकका निषेध हेतु भया, सो सहचरानुपलब्धि हेतु है ॥८०॥ आणु विरुद्ध कार्य आदिककी अनुपलब्धि विधि विौं संभवै है ताके भेद तीन ही हैं, तिनिकू दिखावनेकू कहैं हैं; विरुद्धानुपलब्धिर्विधी त्रेधा विरुद्धकार्यकारणस्वभावानुपलब्धिभेदात् ॥ ८१ ॥ __याका अर्थ-साध्यतै विरुद्धकी अनुपलब्धि सो विधिसाध्यविर्षे तीन प्रकार है; विरुद्धकार्यानुपलब्धि कहिये साध्यतै विरुद्ध पदार्थका कार्यका अभाव, बहुरि विरुद्धकारणानुपलब्धि कहिये साध्यतै विरुद्ध पदार्थका कारणका अभाव, बहुरि विरुद्धस्वभावानुपलब्धि कहिये साध्यतै विरुद्ध पदार्थका स्वभावका अभाव, इनि भेदनितें ॥ ८१ ॥ आशैं तिनिमैं विरुद्धकार्यानुपलब्धिकू कहैं हैं;यथास्मिन् प्राणिनि व्याधिविशेषोऽस्ति निरामयचेष्टानुपलब्धेः॥ ८२ ॥ __याका अर्थ;—इस प्राणीविषै रोगका विशेष है जानैं नीरोग चेष्टा कि यावि अनुपलब्धि है। इहां व्याधिविशेषका सद्भाव साध्य है तिसतै विरोधी व्याधिविशेषका अभाव है ताका कार्य नीरोग चेष्टा ताकी अनुपलब्धि हेतु है, सो विरुद्ध कार्यकी अनुपलब्धिनामा हेतु भया॥८२॥ आणु विरुद्धकारणकी अनुपलब्धिकू कहैं हैं;अस्त्यत्र देहिनि दुःखमिष्टसंयोगाभावात् ॥८३॥ याका अर्थ-इस प्राणीविर्षे दुःख है जाते इष्ट संयोगका याकै अभाव है । इहां दुःखके विरोधी सुख ताका कारण इष्टसंयोग ताकी
SR No.022432
Book TitlePramey Ratnamala Vachanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Chhavda
PublisherAnantkirti Granthmala Samiti
Publication Year
Total Pages252
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size15 MB
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