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________________ हिन्दी प्रमेयरत्नमाला । ११३ योग्य है। ऐसैं सो अनुमान मतभेदकरि दोय अवयव, तीन अवयव, च्यार अवयव, पांच अवयवस्वरूप मानिये है सो अनुमान दोय प्रकार ही है ऐसैं दिखावते संते सूत्र कहैं हैं;- तदनुमानं वेधा ॥४७॥ याका अर्थ—सो अनुमान दोय प्रकार है ॥ ४७ ॥ आगैं सो दोय प्रकारपणांकू कहैं हैं; स्वार्थपरार्थभेदात् ॥४८॥ याका अर्थ-स्वार्थानुमान परार्थानुमान ऐसे भेदकरि दोय प्रकार है । अपनी अर परकी जो अनुमानविर्षे अन्यथा मानि ताका दूर होना याका फल है तातै दोय ही प्रकार है ऐसा अभिप्राय जाननां ॥४८॥ आज स्वार्थानुमानके भेदकू कहैं हैं; स्वार्थमुक्तलक्षणम् ॥४९॥ याका अर्थ-" साधनात्साध्यविज्ञानमनुमानं " ऐसा पूर्व अनुमानका लक्षण कया था सो ही स्वार्थानुमान जाननां ॥ ४९ ॥ आगें दूसरा अनुमानका भेदकू दिखावते संते सूत्र कहैं हैं;परार्थ तु तदर्थपरामर्शिवचनाज्जातम् ॥ ५० ॥ याका अर्थ-तिस स्वार्थानुमानका जो अर्थ साध्यसाधन है लक्षण जाका तिसकू जो अपनां विषय करै प्रगट करै ऐसा जाका स्वभाव होय सो तदर्थपरामर्शी कहिये ऐसा जो वचन तिसौं उपज्या होय ज्ञान सो परार्थानुमान है। इहां नैयायिक कहै है-पंचावयवरूप वचनात्मक परार्थानुमान प्रसिद्ध है सो इहां स्वार्थानुमानका अर्थका प्रतिपादक वचनकरि उपज्या ज्ञानकू परार्थानुमानपणां कहता जो आचार्य सो तिस- वचनकू कैसे ग्रहण न किया ? ताका समाधान करै है-जो हि.प्र. ८
SR No.022432
Book TitlePramey Ratnamala Vachanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Chhavda
PublisherAnantkirti Granthmala Samiti
Publication Year
Total Pages252
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size15 MB
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