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स्वर्गीय पं० जयचंदजी विरचित
इहां पहले सूत्रमैं 'साध्ये' ऐसा द्विवचन है तौऊ अर्थके वश” इहां एकवचन ही संबंध करना, साध्यधर्मविशिष्टता साध्या ऐसैं । बहुरि प्रमाण अर उभय कहिये प्रमाण विकल्प दोऊ ऐसैं दोय भांतिकरि सिद्ध जो धर्मी तावि साध्य जो धर्म ताकरि विशिष्टता साध्य है। दोऊ प्रकारके धर्माविर्षे जो साध्यका पूर्वस्वरूप कह्या सो ही धर्म ताकरि सहितपणां साध्य है । जहां जैसा साध्य होय तैसाहीकरि युक्त धर्मी साध्य है । इहां यह अर्थ है-जो प्रमाणकरि प्राप्त भया भी वस्तु विशिष्टधर्मके आधारपणांकरि विवादमैं आवै सो साध्यपणांकू नांही उलंध, साध्य होय ही । ऐसे ही प्रमाण विकल्प विर्षे भी जोड़ि लेनां ॥२५॥ __ आरौं प्रमाणसिद्ध अरु उभयसिद्ध दोऊ धर्मी अनुक्रमकरि दिखावते संते सूत्र कहै हैं;
अग्निमानयं प्रदेशः, परिणामी शब्द इति यथा ॥२६॥ ___याका अर्थ—यह प्रदेश अग्निसहित है यह तो प्रत्यक्षप्रमाणसिद्ध धर्मी है, बहुरि शब्द है सो परिणामी है इहां शब्द धर्मी है सो उभयसिद्ध है जो शब्द श्रवणमैं आया सो तौ श्रवणप्रत्यक्ष प्रत्यक्षप्रमाणसिद्ध है अर अन्यदेशकालवर्ती शब्द विकल्पसिद्ध है । इहां अग्नि जहां साधिये है सो प्रदेश प्रत्यक्षप्रमाणकरि सिद्ध है, बहुरि शब्द है सो उभयसिद्ध है जातें अल्पज्ञानवाले पुरुषनिकरि अनिश्चित दिशा-देश-कालविर्षे व्याप्त जे सर्व शब्द ते निश्चय करनेंकू समर्थ नाही हूजिये है तौऊ तिस प्रति अनुमानका निरर्थकपणां है, अनुमान तौ अल्पज्ञ ही करै है॥२६॥ - आगें प्रयोगकालकी अपेक्षा साध्यका नियम दिखावता संता सूत्र कहैं हैं;