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________________ स्वर्गीय पं० जयचंदजी विरचित जाननां। पक्षधर्मपणां बहुरि सपक्षसत्वपणां सो तौ अन्वयरूप अर विपक्ष” व्यावृत्तिपणां सो व्यतिरेकरूप, अर अबाधितविषयपणां, असत्प्रतिपक्षपणां ऐसे पांच लक्षण हैं । तिनिकै भी अविनाभावहीका विस्तारपणां है । पंचरूपपणां अविनाभावहीका विशेष है । जो बाधितविषय है सो जाका विषय साध्य ही बाधासहित होय ताकै अविनाभावका अयोग है जाकै प्रतिपक्षीसहितपणां होय ताकी ज्यों ऐसें जाननां । बहुरि साध्याभास जाका विषय ताकै असम्यक् हेतुपणां है-समीचीनहेतुपणां नाही जारौं जैसा पक्ष कह्या तैसा ताका विषयका अभाव है। तिस ही दोषकरि हेतु दोषसहित है ! यातें यह निश्चय भया जो साध्यतै अविनाभावीपणांकरि निश्चित होय सो ही हेतु है ॥ १०॥ आण अविनाभावका भेद दिखावते संते सूत्र कहैं हैं;सहक्रमभावनियमोऽविनाभावः ॥ ११ ॥ याका अर्थ-साध्य साधनकै लार एककाल होनेका नियम सो तो सहभावनियम कहिये, बहुरि जहां कालभेदकरि साध्य साधन अनुक्रमतें होय सो क्रमभावनियम है। ऐसैं अविनाभाव नियम दोय प्रकार है ॥११॥ आरौं सहभावनियमका विषय दिखावते संते सूत्र हैं हैं;सहचारिणोप्प्यव्यापकयोश्च सहभावः ॥१२॥ याका अर्थ–सहचारीनिकै जैसैं रूप रसके एक वस्तुवि युगपत् रहनेका नियम है । बहुरि व्याप्यव्यापकपणांक जैसे वृक्षपणांकै अरु शीतूंपणांकै व्याप्यव्यापकभाव नियम है। ऐसैं सूत्रवि. सप्तमीविभक्ति करि विषय दिखाया है सो सहभावनियम जाननां ॥ १२॥ आगें क्रमभावनियमका विषय दिखावते संते सूत्र कहैं हैं;
SR No.022432
Book TitlePramey Ratnamala Vachanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Chhavda
PublisherAnantkirti Granthmala Samiti
Publication Year
Total Pages252
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size15 MB
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