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________________ ८४ स्वर्गीय पं० जयचंदजी विरचित संख्याकी पंक्तिका संग्रह कहिये संक्षेप” तिनि प्रमाणनिका उपदेश श्रीमाणिक्यनंदिनाम आचार्य भी ऐसे ही करया, बहुरि तिनिका व्याख्यान यह मैं अनन्तवीर्य आचार्य. किया है सो विशुद्धबुद्धीनिके मानने योग्य है कैसा है व्याख्यान ? अव्याहत कहिये बाधारहित है । बहुरि श्लोकमुख्यसंव्यवहाराभ्यां प्रत्यक्षमुपदर्शितम् । देवोक्तमुपजीवद्भिः सूरिभिापितं मया ॥२॥ याका अर्थ-प्रत्यक्ष प्रमाण मुख्य-संव्यहारके भेदकरि दोय प्रकार अकलंकदेवजीनैं कह्या सो ही माणिक्यनंदिजीनें दिखाया सो ही मैं अनंतवीर्यनै जनाया है ॥१२॥ सवैया तेईसा । श्री अकलंक मुनीश भजो परतक्ष परोक्ष प्रमाण जु दोउ । ता मधि हू परतक्ष कह्यो व्यवहार यथारथ भेद है सोउ ॥ माणिकनंदि लयो अनुसार कह्यो तसु आगम जानहु कोउ । वृत्ति रची जु अनंत सुवीरजि देशकथामय मैं सब जोउ॥ ऐसैं परीक्षामुखनाम प्रकरणकी लघुवृत्तिकी वचनिकाविर्षे द्वितीय समुदेश समाप्त भया ।
SR No.022432
Book TitlePramey Ratnamala Vachanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Chhavda
PublisherAnantkirti Granthmala Samiti
Publication Year
Total Pages252
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size15 MB
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