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श्रेयः श्रीवर्धमानस्य परमजिनेश्वरसमुदयस्य समन्तभद्रस्ये त्यादि,
(अष्टसहस्री) अमोघवर्ष राजाके गुरु श्री जिनसेनजीने आपको महान् कवियोंका ब्रह्मा तथा चार प्रकारके कवियोंके मस्तकमें भूषणरूपसे विराजमान सामन्तभद्रीय यशको चूड़ामणिरत्नकी महनीयतामें निवेशित कर साधु साधकताका परिचय दिया है ।
नमः समन्तभद्राय महते कविवेधसे । यद्वचो वज्रपातेन निर्भिन्नाः कुमताद्रयः ॥ कवीनां गमकानां च वादिनां वाग्मिनामपि । यशः सामन्तभद्रीयं मूर्ध्नि चूडामणीयते ॥
(आदि पुराण.) महाकवि श्री वादीभसिंहजीने इनको साक्षात् सरस्वती की मुख्य विहारभूमिरूप वर्णनकर आपके अतिशय पांडित्यको प्रदर्शित किया है।
सरस्वतीस्वैरविहारभूमयः समन्तभद्रप्रमुखामुनीश्वराः । जयन्ति वाग्वज्रनिपातपाटिप्रतीपराद्धान्तमहीघ्रकोटयः॥
(गद्यचिंतामणि ) . कवि श्री वीरनंदिजी महाराजने-पुरुषोत्तमके कंठको सुशोभित करनेमें आभूषणभूत मौक्तिकमालाके समान इनकी वाणीकी दुर्लभताका विशेषतासे वर्णन इस प्रकारलिखा है
गुणान्विता निर्मल वृत्तमौक्तिका नरोत्तमैः कण्ठविभूषणीकृता । नहारयष्टिः परमेवदुर्लभा समन्तभद्रादिभवा च भारती॥
( चंद्रप्रभचरित्र) श्री शुभचन्द्रचार्यजीने इनके वचनोंको अज्ञानान्धकार निवृत्तिके लिये सूर्य किरणोंके समान तथा इनके सामने दूसरोंको हास्यताके पात्र खद्योत समान कहा है।
समंतभद्रादिकवीन्द्रभास्वतां स्फुरंति यत्रामलसूक्तिरश्मयः ।