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आप्त-मीमांसा ।
चोपाई। बुद्धिपूर्वमैं पौरुष मानि दैवकीयमैं बुधि मिलानि ऐसे अनेकांत जे गहैं । ते जन कार्यसिद्धि सब लहै ॥१॥ इतिश्री आप्तमीमांसानाम देवागमस्तोत्रकी संक्षेप
अर्थ रूप देश भाषामय वचनिका विर्षे
_अठमां परिच्छेद समाप्त भया । इहां ताई कारिका इक्याणवै भई । आगैं नवमैं परिच्छेदका प्रारम्भ है।