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॥ श्री पार्श्वनाथाय नमः ॥ श्री जैनधर्मदिवाकर, तीर्थप्रभावक, मरुधरदेशोद्धारक राजस्थान दीपक प्रशान्तमूर्ति प० पू० प्राचार्यदेव श्रीमद् विजयसुशील सूरीश्वरजी म० सा० की सेवा में समर्पित
* अभिनन्दन-पत्र *
हे ! परमशासन प्रभावक पूज्य आचार्यदेव !
राजस्थान की शुष्क तथा दुर्गम भूमि में विचरण करना व अज्ञानांधकार तले दबे जीवों के जीवन पथ को ज्ञानालोक से आलोकित करना कितना दुष्कर कार्य है। १५ वर्षों से आपको इसी प्रदेश में विभिन्न धर्म प्रभावना करना और धर्म प्रकाश से इस प्रदेश को आलोकित करना कठिन परीक्षा है। आपका जोधपुर चार्तुमास अपनी एक विशेषता रखता है । गत २५ वर्षों बाद इस नगर में महान् आगमशास्त्र पूज्य श्री भगवतीसूत्र और भावनाधिकार में श्री विक्रम चरित्र के श्रवण का लाभ यहां के श्रीसंघ को प्राप्त हुए है। इसके साथ ही अनेक कार्य जो यह प्रथम वार ही आपकी निश्रा में यहां हुए हैं ।
आपकी निश्रा में ही पू० साध्वी सिद्धशीला श्री म० सा० की बडी दीक्षा, उत्साही पू० बालमुनि श्री जिनोतम वि० म० सा० एवं पू० पांच साध्वीजी म० के श्री उत्तराध्ययन सूत्र के योग, पू० मु० श्री अरिहंत वि० मा० सा० एवं पू० सांध्वीजी पुष्पा श्री जी म. सा. की अठ्ठाई, श्री नमस्कार महामन्त्र के नवदिन के एकासणे श्री गौतमस्वामी गणधर