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... सप्तभंगी...: ___ यह सप्तभंगी ( सात वचनप्रयोग ) दो भामोंमें विभक्त की जाती है । एकको कहते है ' सकलादेश' और दूसरेको : विकलादेश'।" अमुक अपेक्षासे घट अनित्य ही है ।" इस वाक्यसे अनित्य धर्मके साथ रहते हुए घटके दूसरे धर्मोका बोध करानेका कार्य 'सकलादेश' करता है। 'सकल' यानी तमाम धर्मोको 'आदेश' यानी कहनेवाला । यह 'प्रमाणवाक्य ' भी कहा जाता है । क्योंकि प्रमाण वस्तुके तमाम धर्मोको विषय करनेवाला माना जाता है । "अमुक अपेक्षासे घट अनित्य ही है।" इस वाक्यसे धटके केवल 'अनित्य' धर्मको बतानेका कार्य 'विकलादेश' का है। 'विकल ' यानी अपूर्ण । अर्थात् अमुक वस्तुधर्मको 'आदेश' यानी कहनेवाला — विकलादेश' है । विकलादेश 'नय'-वाक्य माना गया है। ' नय' प्रमाणका अंश है। प्रमाण सम्पूर्ण वस्तुको ग्रहण करता है; और नय उसके अंशको ।
इस बातको तो हरेक समझता है कि, शब्द या वाक्यका कार्य अर्थबोध कराने का होता है । वस्तुके सम्पूर्ण ज्ञानको 'प्रमाण'
" स्याइप्रवक्तव्यमेव, इति युगपद्विधिनिषेधकल्पनया चतुर्थः ।"
" स्यारस्त्येव स्यादवक्तव्यमेव इति विधिकल्पनया युगपद्द विधिनिषेधकल्पा नया च पञ्चमः । - " स्यात् नास्त्येव स्यादवक्तव्यमेव इति निषेधकल्पनया युगपत् विधिनिषेधकल्पनया च षष्ठः ।
" स्यादस्त्येव स्याद् नास्त्येव स्यादेवक्तव्यमेव, इति क्रमतो विधिमिवेधकल्पनया युगपत विधिनिषेधकल्पनयो च सप्तमः ।"
--प्रमाणनयतत्वालोकालंकार ।