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________________ (५२) नयचक्रसार हि० अ० नहीं है और भावसे काले वर्णवाला है अन्य वर्णका नहीं है । संक्षेपमें यह है, कि प्रस्येक वस्तु अपने स्वरूपहीसे 'अस्ति ' कही जा सकती है दूसरेके स्वरूपसे नहीं । जब वस्तु दूसरेके स्वरूपसे 'अस्ति' नहीं कहलाती है तब उसके विपरीत कहलायगी; यानी ' नास्ति ' । स्याद्वादका एक उदाहरण और देंगे । वस्तुमात्रमें सामान्य और विशेष ऐसे दो धर्म होते हैं। सौ 'घडे ' होते हैं उनमें 'घडा' घडा, ऐसी एक प्रकारकी जो बुद्धि उत्पन्न होती है, वह यह बताती है कि तमाम घडोंमें सामान्यधर्म - एकरूपता है मगर लोग उनमें से अपने भिन्न भिन्न घडे जब पहिचान कर उठा लेते हैं तब यह मालूम होता है कि प्रत्येक घडे में कुछ न कुछ पहिचानका चिन्ह है, यानी भिन्नता है । यह भिन्नता ही उनका विशेष धर्म है। इस तरह सारे पदार्थों में सामान्य और विशेष धर्म हैं। ये दोनों धर्म सापेक्ष हैं; वस्तुसे अभिन्न हैं । अतः प्रत्येक वस्तुको सामान्य और विशेष धर्मवाली समझना ही स्याद्वाददर्शन है* । - स्याद्वादके संबंधमें कुछ लोग कहते हैं कि, यह संशयवाद है निश्चयवाद नहीं । एक पदार्थको नित्य भी समझना और अनित्य भी, अथवा एक है वास्तुका 'सत्' भी मानना और 'असत् ' भी मानना संशयवाद नहीं है तो और क्या है ? मगर विचारक x * स्याद्व'दके विषयमे तार्किकोंकी तर्कणाएँ अतिप्रबल है । हरिभद्रसूरिने ‘अनेकान्तजयपताका' में इस विषयका प्रौढताके साथ विवेचन किया है । x गुजरात प्रसिद्ध विद्वान् प्रो० आनंदशंकर ध्रुवने अपने ऐक व्याख्यानमें
SR No.022425
Book TitleNaychakra Sara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMeghraj Munot
PublisherRatnaprabhakar Gyanpushpmala
Publication Year1930
Total Pages164
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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