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सामान्य विशेष स्वभाव लक्षण. सक्के हैं तथा (२) वृक्ष, आम्र, निम्ब, जंबू प्रमुख अनेक हैं. परन्तु वृक्षत्व सबमें है इसको अवान्तर सामान्य कहते हैं. यह पच दर्शन तथा अचक्षु दर्शन से ग्राह्य हैं. और अस्तित्व, वस्तुत्वादि सामान्यस्वभाव अवधि दर्शन तथा केवलदर्शन से ग्राह्य है. विशेष धर्म ज्ञानगुण से ही ग्राह्य होता है. अब विशेष धर्म का लक्षण कहते हैं. जैसे-किसी अपेक्षा से नित्य एवं अनित्य, किसी रीतिसे अवयव सहित और अवयव रहित (अविभाग पर्याय से सावयव, सामर्थ पर्याय से निरवयव) और सक्रिय हेतु देशगत जो गुण है वह गुणन्तर में व्यापक नहीं होता और जो गुण समस्त द्रव्य में व्यापक हो उसको सर्वगत कहते हैं. ऐसा जो धर्म वे सव विशेष स्वभाव है. इस तरह विशेष जानने योग्य पदार्थ के गुण की प्रवृत्ति का कारण विशेष स्वभाव है. और जो कार्य करे उस गुणको भी विशेष धर्म समझना परन्तु विशेष सामान्य से रहित नहीं है. और न सामान्य विशेषसे रहित है।
ते मूल सामान्यस्वभावाः पद । ते चामी (१) अ: स्तित्वं, (२) वस्तुत्वं, (३) द्रव्यत्वं, (४) प्रमेयत्वं, (५.) सत्वं, (६) अगुरुलघुत्वं । तत्र १ नित्यत्वादिनां उत्तर सामान्यानां परिणामिकत्वादिनां निःशेषस्वभावानामाधारभूत धर्मत्वमस्तित्वं (२) गुणपर्यायाधारत्वं वस्तुत्वं (३) अर्थक्रियाकारित्वं, द्रव्यत्वं अथवा उत्पादव्ययोर्मध्ये उत्पादपर्यायाणां जनकत्व प्रसवस्य आविर्भाव लक्षणव्ययीभूत पर्यायाणां तिरोभाव्यभाव रूपस्या