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________________ (२) नयचक्रसार, हि० अ० शुद्धआनन्द रस को स्थान और परमब्रह्म ऐसे वीरभगवान को प्रणाम करके, सुधर्मस्वाम्यादि संघ श्रेष्ठ वाचकों के समुदाय को तथा अपने गुरू दीपचन्द्रादि श्रुतपाठकों को नमस्कार करके अल्पज्ञजनों के बोधार्थ और सम्यग् मार्ग की विशुद्धि के लिये नयचक्र के शब्दार्थ को में लोक भाषा में कथन करता हूं. श्री वर्द्धमानमानम्य, स्वपरानुग्रहाय च । क्रियते तत्वबोधार्थ, पदार्थानुगमो मया ॥१॥ अर्थ--श्री महावीरस्वामी को प्रणाम करके अपने और पर जो शिष्यादि उनके उपकारार्थ वस्तुधर्म को जानने के लिये धर्मास्तिकायादि के स्वरूप को में कहता हूं. विवेचन-संसार में अन्यदर्शनीय लोग द्रव्य को अनेक प्रकार से कहते हैं. जैसे-नैयायिक सोलह पदार्थ, वैशेषिक सातपदार्थ, वैदान्तिक, सांख्य एक पदार्थ और मीमांसिक पांच पदार्थ कहते हैं. वे सब मिथ्या है. उन लोगोंने पदार्थ के स्वरूप को नहीं पहिचाना. श्री अरिहंत, सर्वज्ञ प्रत्यक्ष ज्ञानीयोंने छे पदार्थ कहे हैं. " एक जीव और पांच अजीव ” ( इनका स्वरूप आगे चलके बतावेंगे ) तथा नौ तत्त्व रूप जो नौ पदार्थ कहे हैं. उसमें एक जीव दूसरा अजीव यह दो पदार्थ मुख्य है. शेष सात तत्त्व केवल जीव अजीव के साधक, बाधक, शुद्ध, अशुद्ध - परिणति की अवस्था भेद को पहचानने के लिये किये हैं. . द्रव्याणांच गुणांनां च पर्यायाणां च लक्षणं । निक्षेप नय संयुक्तं तत्व भेदैरलं कृतम् ॥
SR No.022425
Book TitleNaychakra Sara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMeghraj Munot
PublisherRatnaprabhakar Gyanpushpmala
Publication Year1930
Total Pages164
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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