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________________ नयस्वरूप. (११७) सम्प्रतिपत्तुरभिप्रायविशेषो नयः । स्वाभिप्रेतादेशादपरांशापलापी पुनर्नयामासः स समासतः द्विमेदः द्रव्यार्थिकः पर्यायार्थिकः आयो नैगमसंग्रहव्यवहारऋजुसूत्र भेदाचतुर्दा केचित् ऋजुसूत्रं पर्यायार्थिकं वदन्ति ते चेतनांशत्वेन विकल्पस्य ऋ. जुसूत्रेग्रहणात् श्रीवीरसासने मुख्यतः परिणतिचक्रस्यैव भावधर्मत्वेनांगोकारात् तेषां ऋजुमूत्रा द्रव्यनये एव धर्मयोधर्मिणो धर्मधर्मिणोश्च प्रधानोपसर्जन आरोपसङ्कल्पांशादिभावेनानेकमग्रहणात्मको नैगमः सत्चैतन्यमात्मनीतिधर्मयोः गुणपर्यायवत् द्रव्यमिति धर्मधर्मिणोः क्षणमेको सुखी विषयाशक्तो जीव इति धर्मधर्मिणोः सूक्ष्मनिगोदीजीवसिद्धसमानसत्ताकः अयोगीनो संसरीति अंशग्राही नैगमः धर्माधर्मादिनामेकान्तिकपार्थक्या. भिसन्धिनैगमाभासः। . अर्थ-अब स्याद्वादरत्नाकर ग्रन्थ से नय का स्वरूप लिखते हैं. श्रुतज्ञान के स्वरूप से प्राप्त किया जो पदार्थ के अंशविषयी ज्ञान और इस से इतर जो दुसरा अंश उस दुसरे अंश प्रति उदाशीनता वाले का जो अभिप्राय विशेष उसको नय कहते हैं. अर्थात् वस्तु के एक अंश को ग्रहण कर के अन्य से उदासी पने रहे उसको नय कहते हैं. और एक अंश को मुख्य कर के दूसरे अंश को उत्थापे-निषेध करे उस को नयाभास (कुनय) कहते हैं। - नय के मुख्य दो भेद हैं. ( १ ) द्रब्यार्थिक ( २ ) पर्यायार्थिक. द्रव्यार्थिक के चार भेद हैं. ( १ ) नैगम, (२) संग्रह, १३) व्यवहार, ( ४ ) ऋजुसूत्र. कई आचार्य ऋजुसूत्र नय को पर्यायार्थिक भी कहते हैं. इस लिये द्रव्यार्थिक के तीन भेद भी कहे हैं.
SR No.022425
Book TitleNaychakra Sara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMeghraj Munot
PublisherRatnaprabhakar Gyanpushpmala
Publication Year1930
Total Pages164
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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